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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१६४

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मलखानका बिवाह। १५९

सब अनब्याही ब्याकुल ह्वैकै घरका चलीं मनैं पछिताय॥
गै गजमोतिनि निज महलनमें सोई समय रातिको पाय १०
जागे रोवन शय्या लागी माता लीन्ह्यो हृदय लगाय॥
काहे रोवत तुम बेटीहौ हमको हालदेउ बतलाय ११
दीख्यों सुपना मैं माता है ब्याहे लिये कोऊ घरजाय॥
मैं सुधि कीन्ह्यों तहँ बप्पाकी माता रोय उठिउँ अकुलाय १२
सुनिकै बातैं ये बेटी की चंपा गोद लीन बैठाय॥
चूम्यो चाट्यो गले लगायो बातनदिह्यो ताहि बहलाय १३
अवसर पायो जब रानी ने राजा पास पहुंची जाय॥
बेटी लायक है ब्याहन के टीका देउ आप पठवाय १४
समया आयो अब कलियुगका औ युगधर्म रहा दर्शाय॥
बातैं सुनिकै ये रानी की राजा नेगी लीन बुलाय १५
सूरज बेटा को बुलवायो तासों हाल कह्यो समुझाय॥
दिल्ली कनउज चहु तहँ जायो जायो जहँ न चँदेलोराय १६
तीन लाख को टीका लैकै सूरज कूच दीन करवाय॥
आठ रोज की मैजलि करिकै पहुँच्यो जहाँ पिथौरराय १७
को गति बरणै तहँ दिल्ली कै जहँपर रहै कौरवनराज॥
जहँपर गर्जत दुर्योधनरहै जहँपर अये कृष्णमहराज १८
भीषम ऐसे जहँ योधा थे द्रोणाचार्य ऐस द्विजराज॥
तहपर गरजे शिरीकृष्ण जी जयजयनमोनमो व्रजराज १९
जब सुधि आवत है दिल्ली के तब मन आय जात व्रजराज॥
सदा पियारे हैं बिप्रन के अबहूं देत खानको नाज २०
तहँपर पहुँचे सूरज ठाकुर चिट्ठी तुरत दीन पकराय॥
आँक ऑक सब पृथ्वी बांचा जो कुछ लिखा बिसेनेराय २१