पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१६४

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मलखानका विवाह । १५६ ३ सब अनब्याही व्याकुल ढेकै घरका चलीं मर्ने पछिनाय ॥ गैगजमोतिनि निज महलनमें · सोई समय रातिको पाय १० जागे रोवन शय्या लागी माता लीन्यो हृदय लगाय ।। काहे रोवत तुम बेटीहौ हमको हालदेउ बतलाय ११ दीख्यों सुपना मैं माता है ब्याहे लिये कोऊ घरजाय ॥ मैं सुधि कीन्ह्यों तहँ बप्पाकी माता रोय उठिउँ अकुलाय १२ सुनिक वाते ये बेटी की चंपा गोद लीन बैठाय ।। चूम्यो चाट्यो गले लगायो बातनदिह्यो ताहि बहलाय १३ अवसर पायो जब रानी ने राजा पास पहुंची जाय ॥ बेटी लायक है ब्याहन के टीका देउ आप पठवाय १४ समया आयो अब कलियुगका औ युगधर्म रहा दर्शाय ।। बातें सुनिकै ये रानी की राजा नेगी लीन वुलाय १५ सूरज बेटा को बुलवायो तासों हाल कह्यो समुझाय ।। दिल्ली कनउज चहु तहँ जायो जायो जहँ न चंदेलोराय १६ तीन लाख को टीका लैकै सूरज कूच दीन करवाय ॥ पाठ रोज की मैजलि करिकै पहुँच्यो जहाँ पिथौरराय १७ को गति बरणै तहँ दिल्ली के जहँपर रहै कौरवनराज ।। जहॅपर गर्जत दुर्योधनरहै जहपर अये कृष्णमहराज १८ भीषम ऐसे जहँ योधा थे द्रोणाचार्य ऐस द्विजराज ।। तहपर गरजे शिरीकृष्ण जी जयजयनमोनमो ब्रजराज १९ जव सुधि आवत है दिल्ली के तब मन आय जात ब्रजराज ॥ सदा पियारे हैं विपन के अवह देत खानको नाज २० तहपर पहुँचे सूरज ठाकुर चिट्ठी तुरत दीन पकराय । आँक ऑक सब पृथ्वी बांचा जो कुछ लिखा विसेनेराय २१