पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१६९

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आल्ह खण्डा १६१ बेटी तुम्हरी गजमोतिनि का टीका चदा मोहोचे जाय । जाति बनाफर की होनी है जानों भलीभांति तुमभाय ७० पानी पोहे को घर तुम्हरे आपन धर्म गहे आय ॥ अबै न विगरा कछु राजाहै साँचे हाल दीन बतलाय ७१ सुनिके बातें ये माहिल की राजा गयो सनाकाखाय ।। तबलों सूरज अटा कचहरी राजे शीश नवायो आय ७२ राजा वोल्यो फिरि सूरजते टीका कहाँ चढ़ायो जाय॥ दोउ कर जोरे सूरज बोले दादा सत्य देउँ बतलाय ७३ दिल्लीकनउज हम फिरि आयन टीका क्यहुन लीन महिपाल। ॥ मोहवे उरई के अन्दर में मिलिगे देशराज केलाल ७४ लै बरजोरी गे मोहवे को, टीका चढ़ा वीर मलखान ।। जो कछु रारिकरत मोहवे में दादा जात पान पर भान ७५ माघ शुक्ल तेरसिको अइहैं यह सच साइतिका परमान ।। मारव व्याहब जो कछु कहिही उतने धनै भई है हान ७६ जितना टीका में दै आये लाये आपन प्राण वाय॥ साम दाम अरु दण्ड भेद सों कीन्दे काज तहांपर जाय ७७ सुनिकै वाते ये सूरज की राजै पास लीन बैठाय ॥ फिरि शिरसंध्यो गजराजाने लीन्ह्यो तुस्तै गले लगाय ७८ राजा बोल्यो फिरि माहिल ते ठाकुर उरई के सरदार ॥ ब्याहन अइहैं जब हमरे घर-- तबहीं चली तुस्त तलवार ७६ ब्याह न होई गनमोतिनिका तुमते साँच दीन बतलाय ।। विदा मांगिक फिरि राजासों माहिल चले बड़ा सुखपाय ८० माघ महीना आवन लाग्यो धावन लगे मोहोचे दूत ।। लिखिलिखिचिट्ठीपरिमालिकने 'न्यवतन हेत पठावा दूत ८९