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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१७८

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मलखानका बिवाह। १७३

धर्म व्यवस्था जहँ परिजावै तहँ सब करैं कहैं हम गाय २५
बातैं सुनिकै ये माहिल की राजा बड़ा कीन सतकार॥
हमरे नीके के साथी हौ राजा उरई के सरदार २६
माहिलचलिभे फिरितम्बुनको राजै नेगी लीन बुलाय॥
लैकै तोड़ा दो रुपियन के औ नौ हीरा लीन उठाय २७
चलिभे राजा झुन्नागढ़ सों पथरीगढ़ै पहुंचे आय॥
तहँपर पहुँचे त्यहि तम्बुन में जहँपर रहैं बनाफरराय २८
जो कछु सामा लैकै गेते आल्है नजरि दीन सो जाय॥
देखिकै सामा महराजा की हर्षित भये बनाफरराय २९
ऊदन बोले फिरि राजा सो काहे किह्यो परिश्रम आय॥
तब गजराजा बोलन लागो मानो कही लहुरवाभाय ३०
देश हमारे की रीती यह परचव लेयँ प्रथमही आय॥
जहर पठावैं ते शर्बत में देखे बिना पियैं जे भाय ३१
बिना बुद्धिके ते नर कहिये उनके निकट कबौं ना जायँ॥
पास परीक्षा तुमको जान्यो लरिकाभागिगयो भयखाय ३२
पै जो पीवन आल्हा शर्बत सूरज तुरत देत बतलाय॥
कछु छल नाही हम कीन्होरहै लरिकाभागिगयो भयखाय ३३
इकलो लड़िका यहिसमयामें माड़ोतरे चलै हर्षाय॥
भाँवरि होवैं त्यहि लड़िका की हाथ न छुवै लोह कछुभाय ३४
सुनिकै बातैं ये राजा की मलखे कहा बचन मुसुकाय॥
छलो की सानी सब बातैं हैं घातैं सबै परैं दिखलाय ३५
इतना सुनिकै आल्हा बोले मानों कही बिसेनेराय॥
किरिया करिल्यो श्रीगङ्गा की तौ वर तुरत देयॅ पठवाय ३६
गङ्गा कीन्ही गजराजा ने औ यह कहा बचन परमान॥