पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१८३

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आल्हखगडा १७८ हाल विसेने जो सुनि पावें तो यहि डरें जानसों मार ८५ हल्ला करिके यह वोलतभै तब हम कहा याहि समुझाय ।। धीरे बोले जनवासे में नहिं कहुँ सुनी विसेनोराय ८६ इतना सुनते मुहँ मटकायो गारी दियो बनाफरराय ॥ ढोलक नारिन औशूदन की तुमसों कथा कहाँ में गाय ८७ जैसे पाटे दोलक बाजै नारी दशा स्वई है भाय॥ गगरीदाना शूद उताना यह मिला खूब ह्याँ आय ८८ भला तुम्हारो हम नित चाहें साँची सुनो बनाफरराय ॥ जैसे मैंने म्बर ब्रह्मा हैं तैसे तुहूँ लहुरखा भाय ८६ घाटि न जाने हम ब्रह्मा ते कैसी कही उदयसिंहराय ॥ इतना सुनिकै ऊदन चलिमे सँगौमालिनिलीन लिवाय ६० जहँ पर बैठे थे आल्हाजी ऊदन तहाँ पहूँचे जाय॥ कही हकीकति तहँ मालिनिने ऊदन पाती दीन सुनाय ६१ बड़ा शोचभा सुनि आल्हाके मनमें चार चार पछितायें । हमहीं पठवा था मलखे को तबचलिगयो लहुरवाभाय ६२ दिह्यो अशर्फी बहु मालिनिको कीन्ह्यो विदा बनाफरराय ।। ॥ मालिनि चलिमे जनवासेते पहुँची फेरि महलमें जाय ६३ कह्योहकीकति गजमोतिनिते ऊदन बोले शीश नवाय॥ हुकुम जो पावें हम दादा को तो मलखे को लवे छुड़ाय। बातें सुनिक ये ऊदन की आल्हा हुकुम दीन फर्माय ।। हुकुम लगायो फिरि ऊदन ने डका तुरत दीन बजवाय ६५ बाजे डका अहतङ्का के सत्रियाँ फौज भई तय्यार॥ हथी चढ्या हाथिन चढ़िगे बाँके घोड़न भे असवार ६६ . पहिल नगाड़ा में जिनबंदी दुसरे वांधि लीन हथियार ॥