इतना कहतै बघऊदन ने औझड़ हना ढालकी जाय॥
कांतामल घोड़ा ते गिरिगा पकरा तुरत बनाफरराय १६८
बांधिकै मुशकै काँतामल की तम्बू तुरत दीन पहुँचाय॥
गा हरिकारा तब झुन्नागढ़ राजै खबरि सुनायो जाय १६९
खेत छूटिगा दिननायक सों झंडा गड़ा निशाको आय॥
तारागण सब चमकन लाग्यो संतन धुनी दीन परचाय १७०
माथ नवावों पितु अपने को ध्यावो तुम्हें भवानीकन्त॥
राम रमा मिलि दर्शन देवो इच्छा यही मोरिभगवन्त १७१
इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आई, ई) मुंशी नवककिशोरात्मजबाबूप्रयागना-
रायणजीकीआज्ञानुसारउन्नामप्रदेशान्तर्गतपडरीकलांनिवासिमिश्र
बंशोद्भवबुधकृपाशङ्करसूनुपण्डितललिताप्रसादकृतऊदनबिजय
वर्णनोनामद्वितीयस्तरंगः ॥२॥
सवैया॥
होत नहीं जपहू तपहू अपने मन में यहही पछतावैं।
काम औ क्रोध बढ़ैं नितही दुखही दुखसों हम देह बितावैं॥
शान्ति औ शील दया अरु धर्म बिना इन कौन कहौ सुखपावैं।
गावैं सदा रघुनन्दन को गुण बन्दन कै ललिते बर पावैं १
सुमिरन॥
हम पद ध्यावैं पुरुषोत्तम के नरनारायण शीश नवाय॥
नर तो जानो तुम अर्जुन को गीतासुना सकल ज्यहिभाय १
हैं नारायण कृष्णचन्द्र तहँ जिनकासुयश रहाजगभ्राज॥
को गति बरणै पुरुषोत्तम कै जिनको नाम राम महराज २
कोधों पैदा फिरि दुनियां भा कोधों बैठि करै असराज॥