पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१९०

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मलखानका विवाह । १८५ इतना कहते बघऊंदन ने भौझड़ हना ढालकी जाय ।। ॥ कांतामल घोड़ा ते गिरिगा पकरा तुरत बनाफरराय १६८ बांधिक मुशकै काँतामल की तम्बू तुरत दीन पहुँचाय ॥ गा हरिकारा तब अन्नागढ़ राजै खबरि सुनायो जाय १६६ खेत छूटिगा दिननायक सों झंडा गड़ा निशाको आय ॥ तारागण सब चमकन लाग्यो संतन धुनी दीन परचाय १७० माथ नवावों पितु अपने को ध्यावो तुम्हें भवानीकन्त। ॥ राम रमा मिलि दर्शन देवो इच्छा यही मोरिभगवन्त १७१ इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आई, ई ) मुंशी नवककिशोरात्मजवाबूप्रयागना- रायणजीकीआज्ञानुसारउन्नामप्रदेशान्तर्गतऍडरीकलांनिवासिमिश्न शोद्भवबुधकृपाशङ्करसूनुपण्डितललिताप्रसादकृतऊदनविनय पर्णनोनामद्वितीयस्तरंगः ॥२॥ सवेया॥ होत नहीं जपहू तपहू अपने मन में यहही पछतावें। काम भी क्रोध बढ़े नितही दुखही दुखसों हम देह बिता॥ शान्ति औशील दया अरुधर्म बिना इन कौन कहाँ सुखपावें। गावे सदा रघुनन्दन को गुण वन्दन कै ललिते वर पावें १ सुमिरन ॥ हम पद घ्यावें पुरुषोत्तम के नरनारायण शीश नवाय ।। नर तो जानो तुम अर्जुन को गीतासुना सकल ज्यहिभाय ? हैं नारायण कृष्णचन्द्र तहँ जिनकासुयश रहाजगभ्राज ।। को गति वरणे पुरुषोत्तम कै जिनको नाम राम महराज २ फोधों पैदा फिरि दुनियाँ भा कोषों वैठि करें असराज ।।