मिला भेट करि सबकाहू सों फुलियामालिनिलीनबुलाय॥
बहुधनदीन्ह्योफिरिफुलियाको रोवत चढ़ी पालकीजाय ११५
बड़ी खुशाली आल्हा कीन्ह्यो बहुधन द्वारे दीन लुटाय॥
बिदा मांगिकै गजराजा सों लश्कर कूच दीनकरवाय ११६
सात रोज को धावा करिकै पहुँचे नगर मोहोबा जाय॥
सखियाॅ मंगल गावन लागीं परछन भई द्वारपर आय ११७
बिदा मांगिकै न्यवतहरी सब निज निज देशगये हर्षाय॥
चील्ह रूप धरि सुनवाँ आई मल्हनाखुशीभईअधिकाय ११८
देवलि बिरमा त्यहि औसर में फूली अंग न सकैं समाय॥
को गति वर्णे परिमालिक की मानों इन्द्रलोक गे पाय ९१९
पिता आपने की दाया सों मलखे ब्याह गयों सब गाय॥
नही भरोसा निज भुजबलका किरपाशंकर करैं सहाय १२०
आशिर्वाद देउँ मुंशीसुत जीवो प्रागनरायण भाय॥
हुकुम तुम्हारो जो होतो ना ललितेकहतकौनबिधिगाय १२१
रहै समुन्दर में जबलों जल जबलों रहैं चन्द औ सूर॥
मालिक ललितेके तबलों तुम यशसों रही सदा भरपूर १२२
इष्ट देवता मम एकै हैं पूरण ब्रह्म राम भगवन्त॥
चरणकमल तिन धरि हिरदे में ह्याँसों करों तरॅग को अन्त १२३
इति श्रीलखनऊ निवासि (सी, आई, ई) मुंशीनवलकिशोरात्मज बाबू
प्रयागनारायणजीकी आज्ञानुसारउन्नामप्रदेशान्तर्गतपॅड़रीकलांनिवासि
मिश्रबंशोद्भव बुध कुपाशंकरसूनु पं॰ ललिताप्रसादकृत
मलखेपाणिग्रहणवर्णनोनामतृतीयस्तरंगः ॥३॥
मलखे विवाहसमाप्त॥
इति॥