पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२०२

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अथ श्राल्हखण्ड॥ ब्रह्माका विवाह अथवा दिल्लीकी लड़ाई । सवैया॥ कर दीन गह्यों तुमको रघुनाथ करो अबतो रखवारी । पायके शाप पपाण भई मुनिनारि दयालु दियो तुम तारी ।। हा राम कह्यो यवनो यकवार गयो तव धामहि बेगि खरारी । दीन पुकार करै ललिते प्रभु चूक क्षमो रघुनाथ हमारी १ सुमिरन ॥ पहिले सुमिरों पद गणेश के गौरा पारवती के बाल ।। हाथी आनन सम आनन है सेंदुर सदा विराजे भाल ? बड़ी पियारी जिन दुर्वा है फूलो बड़े पियारे लाल ॥ भोग लगावै जो लड्डू को तापर खुशी रहैं सब काल २ हैं शिवशङ्कर के लरिका ते अरिका करें सदा जे नाश। विधिवत पूजनजोकोउकीन्ह्यो पूरी सदा तासुकी आश ३ बड़ो भरोसो तिन गणेश को अपने हृदय करों सब काल ।। करो मनोरथ पूरण हमरो गौरा पारवती के लाल ४ दि मुमिरनी गै गणेशक सुनिये वेला केर हवाल ।।