पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२०४

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ब्रह्माका विवाह । १६४ ३ खयो मिठाई औ मेवा कछु पलँगा सोय रही फिरिजाय । फिकिरि लगाये सो व्याहे की एका एकी उठी कवाय १२ हम नहिं जैहैं अब श्वशुरे को यह कहि रोय उठी चिल्लाय ।। रानी अगमा तहँ ठाढ़ी थी तुरतै छाती लीन लगाय १३ धीरज देके माता पूछ बेटी स्वपन दीख का आज ॥ इतना सुनिकै वेटी बोली माता कहतलगै बड़िलाज १४ माता बोली फिरि बेटी सों बेटी सत्य देउ बतलाय ॥ कैसो स्वपना तुम दीख्यो है हमरे धीर धरा ना जाय १५ सुनिकै बातें ये माता की वेटी कहन लागि त्यहि बार। मोहिं वियाहनजनु कोउआयो हाथ म लिये ढाल तलवार १६ फेरि बैठायो.मोहिं डोला पर अपने घरै लिये सो जाय ।। ऐसा. दीख्यों जब माता मैं तबहीं रोय उठिउँ चिल्लाय ९७ इतना कहिकै बेला चलि भै खेलन लागि सखिन के साथ ।। महलन आये पिरथी राजा रानी गहाजाय तब हाथ १८ स्वपन बतायो सब बेला को सो सुनि लीन पिथौराराय ।। ब्याहन लायक अब कन्या है वोली बार बार समुझाय १६ रानी अगमा की बातें सुनि बोले पृथीराज महराज ॥ कहे अधीरज तुम होतीही रानी कहा न दारों आज २० इतना कहिकै पिरथी चलिमे औ दखार पहूंचे आय ।। ताहर बेटा को बुलवायो चौंड़ा बाम्हन लीन बुलाय २१ कलम दवाइति कागज लैकै चिट्ठी लिखन लाग सरदार ॥ शिरी सखऊ शिरिपत्री करि पाछे आपन राम जुहार २२ पहिलि लड़ाई है द्वारपर मड़ये कठिन चली तलवार ।। खान कलेवा लड़िका आई तबहूँ मूड़ कटावव यार २३