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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२०४

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ब्रह्माका बिवाह। १९९

खयो मिठाई औ मेवा कछु पलँगा सोय रही फिरिजाय॥
फिकिरि लगाये सो ब्याहे की एका एकी उठी कवाय १२
हम नहिं जैहैं अब श्वशुरे को यह कहि रोय उठी चिल्लाय॥
रानी अगमा तहँ ठाढ़ी थी तुरतै छाती लीन लगाय १३
धीरज दैकै माता पूछै बेटी स्वपन दीख का आज॥
इतना सुनिकै बेटी बोली माता कहतलगै बड़िलाज १४
माता बोली फिरि बेटी सों बेटी सत्य देउ बतलाय॥
कैसो स्वपना तुम दीख्यो है हमरे धीर धरा ना जाय १५
सुनिकै बातैं ये माता की बेटी कहन लागि त्यहि बार॥
मोहिं बियाहनजनु कोउआयो हाथ म लिये ढाल तलवार १६
फिरि बैठायो मोहिं डोला पर अपने घरै लिये सो जाय॥
ऐसा दीख्यों जब माता मैं तबहीं रोय उठिउँ चिल्लाय ९७
इतना कहिकै बेला चलि भै खेलन लागि सखिन के साथ॥
महलन आये पिरथी राजा रानी गहाजाय तब हाथ १८
स्वपन बतायो सब बेला को सो सुनि लीन पिथौराराय॥
ब्याहन लायक अब कन्या है बोली बार बार समुझाय १९
रानी अगमा की बातें सुनि बोले पृथीराज महराज॥
कहे अधीरज तुम होतीहौ रानी कहा न टारों आज २०
इतना कहिकै पिरथी चलिभे औ दरबार पहूंचे आय॥
ताहर बेटा को बुलवायो चौंड़ा बाम्हन लीन बुलाय २१
कलम दवाइति कागज लैकै चिट्ठी लिखन लाग सरदार॥
शिरी सरबऊ शिरिपत्री करि पाछे आपन राम जुहार २२
पहिलि लड़ाई है द्वारेपर मड़ये कठिन चली तलवार॥
खान कलेवा लड़िका आई तबहूँ मूड़ कटावव यार २३