पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२३१

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आल्हखण्ड। २२६ जो कछु भापा पृथीराज ने ऊदनजाय कह्यो सबहाल १७५ सुनीहकीकति जवमाहिल सब पहुंचा पृथीराज के पास। बड़ी उदासी सों बोलत भा राजा करो वचन विश्वास १७० व्याह जो होइहै ब्रह्मानंद का होइहै बड़ा जगत उपहास ॥ भेटन आवे परिमालिक जब तब तुमकरोदारपरनाश १७६ इतना कहिकै माहिल चलिमे अब ऊदनके सुनो हवाल॥ सुनिकै बातें वघऊदन की बोले तुरत रजापरिमाल १८० ताकत हमरे अस नाहीं है जो हम मिलें द्वार समधार। गजभर छाती पृथीराज की क्यहिके जमे करजे बार १८१ रह्यो भरोसे तुम हमरे ना मानो कही बनाफरराय ॥ मलखे बोले तव आल्हा ते दोऊ हाथ जोरि शिरनाय १८५ भयो हँसोवा अब दिल्ली माँ दादा साँच पर दिखराय । ऐसी बातें राजा बोले सो तुम सुनी रह्योहे भाय १८३ अब तुम चलिहौ समध्वारे को तो सब वात यहाँ रहिजाय॥ हँसिह दिल्ली में नरनारी भारीविपतिपरीअवआय १८९ जेगे भाई वाप बरोवरि तुम्हरे गये वात बनिजाय॥ सुनिक वातें ये मलखे की आल्हा हाथी दीन बढ़ाय१८५ मार दाढ़े पृथीराज जहँ तहँपर गये बनाफरराय ॥ उतरिकै हाथी के हौदा ते मनमें सुमिरिशारदामाय १८ गय सामने जब पिरथी के दधि औपान दीन चपकाय।। भा समवार द्वारपरयाय पिरथी बोले तह आल्हा सों मानो कही बनाफरराय ।। भव तुम जावो निज तम्बू को भारीसमयगयोनगच्यायर८८ निके वात ये पिस्थी की लश्कर कूच दीन करवाया। लखें तमाशा तह नारी नर