चन्दकवीश्वर के मिलने को तुरतै चला चँदेलाराय ६४
जायकै पहुँच्यो त्यहि तम्बू में जहँ पर बैठ बीर चौहान॥
चन्दकबीश्वर के आगेधरि कीन्ह्योबहुतभांतिसनमान ६५
उठा पिथौरा तब आसन ते आयो जहाँ चँदेलाराय॥
हाथ पकरिकै चन्देले को अपने हाथे दिह्यो चपाय ६६
देखि वीरता पृथुइराज की तब पहिचना कनौजीराय॥
चन्दकबीश्वर को दैकै सब फिरि दरबार पहूँचा आय ६७
हुकुम लगायो निज मन्त्री को बहुतक मल्ल लेउ बुलवाय॥
जाय न पावैं दिल्लीवाले इनका कटा देउ करवाय ६८
त्यही समझ्या त्यहि अवसरमाँ पृथुइ कूच दीन करवाय॥
कनउज तेरी उत्तर दिशिमाँ पहुंचे पांच कोसपर जाय ६९
हिरसिंह ठाकुरको तहँते फिरि तुरतै दिल्ली दीन पठाय॥
साजिकै फौजै चतुरंगिनि को हमको यहाँ मिलौ तुमआय ७०
सुनिकै बातैं पृथुइराज की हिरसिंह चला तुरत शिरनाय॥
जायकै पहुँच्यो फिरि दिल्ली में औ सब खबरि सुनाई जाय ७१
सुनिक बातें सब हिरसिंह की मनमाँ कान्हकुँवर मुसुकाय॥
हुकुम लगायो निज मन्त्री को पुरमें डौंड़ी दो बजवाय ७२
हुकुम पायकै कान्हकुँवर को पुरमें बजन नगारा लाग॥
धम् धम् धम् धम् बाजन लाग्यो मानों मेघ गरज्जन लाग ७३
शब्द नगारा का सुनतै खन क्षत्री सबै भये हुशियार॥
अपने अपने तब चकरनको क्षत्रित गरू दीन ललकार ७४
सवैया॥
कोऊ कहैंदल हाथिन लाउ सजाउ बछेड़न को गोहरावैं।
कोऊ कहैं रथ बैल सँवारु गँवारू अबे का देर लगावैं॥