पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

संयोगिनिस्वयम्बर। १६ चन्दकवीश्वर के मिलने को तुस्तै चला चंदेलाराय ६४ जायकै पहुँच्यो त्यहि तम्बू में जहँ पर बैठ बीर चौहान ।। चन्दकवीश्वर के आगेधरि कीन्ह्योबहुतभांतिसनमान ६५ उठा पिथौरा तब आसन ते आयो जहाँ चंदेलाराय ।। हाथ पकरिकै चन्देले को अपने हाथे दिह्यो चपाय ६६ देखि वीरता पृथुइराज की तब पहिचना कनौजीराय ।। चन्दकवीश्वर को दैक सब फिरि दरवार पहूँचा आय ६७ हुकुम लगायो निज मन्त्री को बहुतक मल्ल लेउ बुलवाय॥ जाय न पावें दिल्लीवाले इनका कदा देउ करवाय ६८ त्यही समझ्या त्यहि अवसरमाँ पृथुइ कूच दीन करवाय ॥ कनउज तेरी उत्तर दिशिमाँ पहुंचे पांच कोसपर जाय ६६ हिरसिंह ठाकुरको तहते फिरि तुरते दिल्ली दीन पठाय ।। साजिकै फौजे चतुरंगिनि को हमको यहाँ मिलौतुमआय७० सुनिक बात पृथुइराज की हिरसिंह चला तुरत शिस्नाय ।। जायकै पहुँच्यो फिार दिल्ली में औसब खबरि सुनाई जाय ७१ सुनिक बातें सब हिरसिंह की मनमाँ कान्हकुँवर मुसुकाय ।। हुकुम लगायो निज मन्त्री को पुरमें डौंड़ी दो बजवाय ७२ हुकुम पायकै कान्हकुँवर को पुरमें बजन नगारा लाग ।। धम् धम् धम् धम् बाजन लाग्यो मानों मेघ गरज्जन लाग ७३ शब्द नगारा का सुनते खन क्षत्री सबै भये हुशियार ॥ अपने अपने तब चकरनको क्षत्रिन गरू दीन ललकार ७४ सवैया ॥ कोऊ कदल हाथिन लाउ सजाउ बछेड़न को गोहरा । कोऊ कहें स्थ बैल सँवारु गँवार अबे का देर लगा।