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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२४८

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उदयसिंहका बिवाह। २४५

बाण लागिगा उर मन्मथ का घायल देशराजका लाल ५५
आदर करिकै फिरि देबा का बोला उदयसिंह सरदार॥
अब दिन थोड़ा अतिबाकी है देखो चलैं शहर को यार ५६
आखिर सोना है बिस्तातर सबदिन मारग में सरदार॥
भागि भरोसे शहर जो पावा तौकस त्यागि चलैंयहिवार ५७
सुनिकै बातैं ये ऊदन की देबा मैनपुरी चौहान॥
ज्योतिष बिद्या के परचय से जाना कुशलकरी भगवान ५८
देबा बोला फिरि ऊदन सों मानो कही लहुरवाभाय॥
द्रब्य बांधिकै पर पुर जैये यहनाहिं हृदयमोर पतियाय ५९
तासों रहिबो तर बिरवा के नीकी बात बनाफरराय॥
द्रव्य प्राण की घातक जानो मानो साँच बचन तुमभाय ६०
इतना सुनिकै ऊदन बोले दाँची मानो कही हमार॥
भय उर सखो कछु जियरे ना चलिये टिकैं यहाँ सरदार ६१
इतना कहिकै बघऊदन ने आगे दीन्ह्यो घोड़ बढ़ाय॥
पाछे चलिभा देबाठाकुर मनमें बार बार पछिताय ६२
जायकै पहुंचे फुलबगिया में मालिन भीर दीखअधिकाय॥
तहाँ पै उतरे बघऊदन जब माली पास पहूँचा आय ६३
माली बोला बघऊदन ते दोऊ हाथ जोरि शिरनाय॥
चलिकै उतरो चहु मोरे घर ह्याँनहिंटिको मुसाफिरभाय ६४
यह फुलवाई महराजा की ह्याँसों मेख लेउ उखराय॥
सुनिकै बातैं त्यहि माली की चुप्पै मुहरै दीन गहाय ६५
पांच अशर्फी माली पायो मनमाँ बड़ा खुशी ह्वैजाय॥
हाथ जोरिकै माली बोला द्वारे टिको चलै तुम भाय ६६
द्वारे कुइँयाँ मीठा पानी नींबी वृक्ष तहाँ अधिकाय॥