पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२५५

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आल्हरखण्ड । २५२ रानी कुशला के महलन में योगीरूपधरा तुम जाय १३६ 'घर घर लूटा तुम माड़ो माँ हमसों शपथकीन फिरिआय ।। भेद वतावा घर अपने का तब तुमलीन वापका दायँ १४० व्याह हमारो जब तुम कीन्हा मलखे हना मोहिं ततकाल ।। मिलन आपनो तुम्हें बताया नाहर देशराज के लाल १४१ साँचो चाहत जो जाको है ताको स्वई मिले सबकाल । यह सुनि राखा हम विप्रन सों सो सबसाँचाभयो हवाल १४२ पै गति तुम्हरी ह्याँ नाहीं है हमसों ब्याह करो सरदार ।। बड़ा लड़ेया मकरन्दा है ज्यहिते हारिगई तलवार १४३ सुनिक बातें ये फुलवा की बोला उदयसिंह सरदार ॥ काह हकीकति मकरन्दा के साँची मानो कही हमार १४४ भल पहिचान्यो तुम मोका है अब सब पूर भये मम काम।। च्याह तुम्हारो अव कीन्हे विन) लौटि न जाय आपनेधाम१४५ इतना सुनिकै फुलवा बोली मानो कही बनाफरराय ।। काठक घोड़ा वाण अजीता जादू सेल शनीचर भाय १४६ पापी जियरा अति मेरो है ताते धीर धरा ना जाय । करो वियारी तुम महलन में सोवो सेज बनाफरराय १४७ ऊदन वोले तब फुलवा ते ' तुमको साँच देय बतलाय ॥ क्वारी कन्या की शय्यापर कबहुँ न धरै बनाफर पायँ १४८ 'धीरज राखो अपने मनमाँ सोवो तुरत सेज में जाय ।। भयो भरोसा तब फुलवा के सोई विकट नींदको पाय १४६ 'तारागण सब चमकन लागे सन्तन धुनी दीन परचाय॥ उये निशाकर आसमान में विरहिनिपीरभईअधिकाय१५० माथ नवाबों पितु भपने को ह्याँ ते करों तरँगको अन्त ।