रानी कुशला के महलन में योगीरूपधरा तुम जाय १३९
घर घर लूटा तुम माड़ो मॉ हमसों शपथकीन फिरिआय॥
भेद बतावा घर अपने का तब तुमलीन बापका दायँ १४०
ब्याह हमारो जब तुम कीन्हा मलखे हना मोहिं ततकाल॥
मिलन आपनो तुम्हैं बतावा नाहर देशराज के लाल १४१
साँचो चाहत जो जाको है ताको स्वई मिलै सबकाल॥
यह सुनि राखा हम बिप्रन सों सो सबसाँचाभयो हवाल १४२
पै गति तुम्हरी ह्याँ नाहीं है हमसों ब्याह करो सरदार॥
बड़ा लड़ैया मकरन्दा है ज्यहिते हारिगई तलवार १४३
सुनिकै बातैं ये फुलवा की बोला उदयसिंह सरदार॥
काह हकीकति मकरन्दा कै साँची मानो कही हमार १४४
भल पहिचान्यो तुम मोका है अब सब पूर भये मम काम॥
ब्याह तुम्हारो अब कीन्हे बिन लौटि न जायँ आपनेधाम १४५
इतना सुनिकै फुलवा बोली मानो कही बनाफरराय॥
काठक घोड़ा बाण अजीता जादू सेल शनीचर भाय १४६
पापी जियरा अति मेरो है ताते धीर धरा ना जाय॥
करो बियारी तुम महलन में सोवो सेज बनाफरराय १४७
ऊदन वोले तब फुलवा ते तुमको साँच देयँ बतलाय॥
क्वारी कन्या की शय्यापर कबहुँ न धरैं बनाफर पायँ १४८
धीरज राखो अपने मनमाँ सोवो तुरत सेज में जाय॥
भयो भरोसा तब फुलवा के सोई विकट नींदको पाय १४९
तारागण सब चमकन लागे सन्तन धुनी दीन परचाय॥
उये निशाकर आसमान में बिरहिनिपीरभईअधिकाय १५०
माथ नवाबों पितु अपने को ह्याँ ते करों तरँग को अन्त॥
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आल्हरखण्ड। २५२
