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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२६३

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आल्हखण्ड। २६०

चढ़िकै हाथी आल्हा चलिभे मनमाँसुमिरि शारदामाय ७३
कीरतिसागरपर पहुंचत भा यह रणबाघु बनाफरराय॥
चढ़े पालकी परिमालिकजी सोऊ अटे वहाँपर जाय ७४
पौढ़ा पलँगापर बघऊदन पागल बना बनाफरराय॥
देखि सनाका परिमालिक भे मनमाँ बार बार पछिताय ७५
ऊदन ऊदनकै गोहरायो आल्हा बैठि पलँगपर जाय॥
जब नहिं बोले बघऊदन हैं आल्हा बोले बचन रिसाय ७६
तुमहीं पठयो है ऊदन को साँची सुनो चँदेलेराय॥
जो कछु जीका यहिके होइहै मोहबा तुरत द्याव फुॅकवाय ७७
बोलि न आवा परिमालिक ते हाँ अरु हूँव बन्दमा भाय॥
ऊदन ऊदन कै गोहरायो बारम्बार चँदेलेराय ७८
तबहूं ऊदन कछु बोले ना आल्हा बहुत गये घबड़ाय॥
उठिकै चुप्पे चढ़ि हाथीमाँ दशहरिपुरै पहूंचे आय ७९
हाल बतायो सब सुनवाँ को सुनतै गई सनाकाखाय॥
सोचन लागी अपने मनमाँ साँची बात गई जिय आय ८०
ऑखि लागिगै तहँ फुलवाकै व्याकुल भये लहुरवाभाय॥
पूरि गवाही मन यह दीन्ह्यो साँची ठीक लीन ठहराय ८१
यह सोचिकै सुनवाँ बोली लीजै ऊदन यहाँ बुलाय॥
करब दवाई हम ऊदन कै नीको होय बनाफरराय ८२
यह मन भायगई आल्हा के तुरतै पलकी दीन पठाय॥
सौंपिकै देबा को ऊदन का औ चलिभयो चँदेलोराय ८३
सवारि फैलिगै यह मोहवेमॉ ब्याकुल उदयसिंह सरदार॥
जितनी रानी परिमालिक की रोई छाँड़ि सबै डिंडकार ८४
जितनी रय्यत रह मोहबे की कीरतिसागर चली बिहाल॥