पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२६९

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आल्हखण्ड । २६६ इतना सुनिक रूपन बोले दोऊहाथजोरिशिरनाय १४५ ऐपनवारी वारी लेकै दूसर जाय आज महराज ॥ नैना मुन्ना औ दिल्ली में कीन्हे हमीं अकेले काज १४६ मुड़ कटावन हम जै ना मानो कही वीर मलखान ।। इतना सुनिक मलखे बोले “हारीबात कही तुम ज्वान १४७ गदका वाना पटा बनेठी अइहें कौन दिवस ये काज ॥ पहिले मुर्चा तुमहीं कैकै राख्यो देशदेशमें लाज १४८ उदन वियाहे का रहिह ना बतियाँ कहिले का रहिजायें। यहु दिनमिलिहै फिरिकवहूंना तातेसोचिसमझिवतलाय१४६ इतना सुनिकै रूपन बोला ठाकुर सिरसा के सरदार ॥ घोड़ दुला हमको देवो ऊदन केरि देउ तलवार १५० घोड़ वेंदुला को मँगवायो औ दैदीन दाल तलवार । ऐपनवारी वारी लैके। दुल उपर भयो असवार १५१ ऍड़ा मसक्यो जब वेंदुलके तुरतै चला हवाकी चाल !! राजा नरपति के द्वारेपर रूपनपहुँचिगयोततकाल १५२ द्वारपालने तब ललकारयो नाहर घोड़े के असवार ॥ कहाँ ते आयो ओं कहँ हो कह है देश राबरे क्यार १५३. इतना सुनिकै रूपन बोले तुम सुनि लेउ हमारो हाल । देश हमारो नगर मोहोत्रा जहँपर बसें रजा परिमाल १५४ छोटो भइया जो आल्हा को वेग देशराज को लाल । कारी कन्या जो नरपति के व्याहनअयेरजापरिमाल १५५ ऐपनवारी हम ले आये रूपन वारी नाम हमार ।। खबरि जनावो तुम राजा को बारी खड़ा तुम्हारे दार १५६ नेग आपने को झगस्त सो अव पडे देय सरदार ।। ।