गा हरिकारा तब नरवरमें राजै खबरि दीन बतलाय ८१
गाफिल बैठे का महराजा शिरपर फौज पहूँची आय॥
सुनिकै बातैं हरिकारा की राजा गये सनाकाखाय ८५
आज्ञा दीन्ह्यो मकरन्दा को जावो समरभूमि तुम धाय॥
इतना सुनतै मकरँद चलिभा तुरतै राजै शीश नवाय ८६
बाण अजीता सेल शनीचर ढूँढ्यो घोड़ काठको जाय॥
पता न पायो इन काहूका लाग्यो बार बार पछिताय ८७
हिरिया मालिनि के घर पहुँचा लीन्ह्यो ताको संग लिवाय॥
चलि मकरन्दा भा नरवरते पहुँचा समरभूमि में आय ८८
आगे घोड़ा मकरन्दा का पाछे सकल सेन समुदाय॥
ऐसी आगे इन्दल ठाकुर पहुँच्यो समरभूमिमें आय ८९
इन्दल बोल्यो मकरन्दा ते मामा काह गयो बौराय॥
भाँवरि कैद्यो म्बरे चाचाकी चाची घरै देउ पठवाय ९०
जीति न पैहो कुल पूज्यनते मामा साँच दीन बतलाय॥
सुनिकै बातैं ये इन्दल की मकरँद बोला बचनरिसाय ९१
सुनवाँ भौजी के बालकतुम इन्दल बेटा लगो हमार॥
समर जो करिहौ तुम फूफा ते जैहौ अवशि यमनके द्वार ९२
इतना कहिके मकरँद ठाकुर तुरतै खैंचिलीन तलवार॥
रान रान सों घोड़ा भिड़िगे ऊंटन भिडिगै ऊंट कतार ९३
सूंढ़ि लपेटा हाथी भिड़िगे अंकुश भिड़े महौतन क्यार॥
तेगा छूटे बर्दवान के कोताखानी चलीं कटार ९४
भाला बलछिनकी मारुइ कहुँ कहुँ कहुँ कड़ाबीन की मार॥
चलैं भुजाली कहुँ कहुँ गह्वर कहुँकहुँकठिनचलैतलवार ९५
टूटे भाला बलछी सोहैं पै जस खेत बाजरे क्यार॥
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उदयसिंहका बिवाह। २७७
