पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/२८८

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चन्दावलि की चौथि। २८५ 1 इतना सुनिक मल्हना बोली ऊदन साँच देय बतलाय ११ लाग महीना अब सावन को गावन लगे नारि नर गीत ।। सुधि जब आवै चन्द्रावलि की तवहीं लेय मोह दलजीत १२ कठिन यादवा बौरीगढ़के जिनके लूटि मार का काम ॥ बेटी ब्याही तिनके घरमाँ कबहुँन द्यखी आपनोधाम १३ चौथि पठाबैं जो बौरीगढ़ तो फिर होय वहाँ पर मार॥ है बहनोई इन्दशाह तव ताके परी बांट है रार १४ गउना रउना सबके आवें बेटी परी मोरि ससुरार ॥ इतना सुनिकै ऊदन बोले माता मानो कही हमार १५ चौथी लेकै बौरी जैबे बहिनी विदा लेव करवाय ।। अब मैं जावों महराजा ढिग माँगों विदा वेगिही जाय १६ इतना सुनिकै मल्हना बोली मानो कही बनाफरराय ।। मोहिं पियारी अस बेटी ना जोतुम जाउ लहुरवाभाय १७ कछु तुम कहियो ना राजाते ना बौरी को होउ तयार ।। प्राण पियारे तुम ऊदनहौ साँची मानो कही हमार १८ मुनिक बातें ये मल्हना की ऊदन चले जहाँ परिमाल । हाथ जोरिक उदयसिंहने औ राजाते कहा हवाल १६ हम अव जैहें चौरीगढ़ को बहिनी विदा कोहँ जाय ।। कहा न मानब हम काहूको राजन हुकुम देउ फरमाय २० बातें सुनिक वघऊदन की तुरते उठा चँदेलाराय॥ साथै लेके बघऊदन को फिरि रनिवास पहूँचाआय २१ डादन लाग्यो तहँ मल्हनाको री कस जौहर दीन लगाय॥ ऊदन जैहैं चलिवोरी को वेटी विदा करह जाय २२ इवें लुटेरा गौरी वाले ओ बइलानी बात वनाय ।।