पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३०

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संयोगिनिस्वयम्बर। पहिरि सिपाही मिलमैंलीन्यो हाथ म लई ढाल तलवार ३ कच्छी मच्छी नकुला सब्जा हरियल मुश्की घोड़ अपार ॥ साजन लागे सब जल्दी सों जिनका तनक न लागैबार ४ डारि हयकलैं तिनके गलमा मुखमा दीन लगाम लगाय॥ गंगा' यमुनी छोड़ि रकाबै पूंजी पटा दीन पहिराय ५ नाल ठोकाई तिनके सुम्मन रेशम तंग दीन कसवाय ॥ को गति वरणे तिन घोड़न के हमरे बूत कही ना जाय ६ हथी महावत हाथी लैकै तिनका दीन तुरत बैठाय ।। चुम्बक पत्थर का हौदा धरि जिनमें सेल वरौंचा खाय ७ साजि साँडिया सब जल्दी सों छकरन लीन बरूद भराय ।। वड़ि बड़ि तो अष्टधातु की गोला एक मनाको खाएँ - बैल नहाये तिन तोपन में नौ डाँड़े को दीन हँकाय ॥ जागा राजा कनउज वाला मनमाँ श्रीगणेशको ध्याय ६ उठिके महलन सों जल्दी सों औ दरबार पहूंचा आय ॥ हमाँ जमाँ औ रायलंगरी इनका लीन्यों तुरतबुलाय १० सुद्धृत गकुर रतीभान औ दोऊ आय गये दरबार ॥ माथ नवायो महराजा को दोऊ बड़े शूर सरदार ११ हाथ जोरिक मंत्री बोल्यो राजन मानो बचन हमार ॥ हाथी घोड़ा सजे सिपाही छकड़ा नहे ठगढ़ तय्यार.१२ धावन पठयो पृथीराज ने सो दरवार पहूंचा आय ॥ हाथ जोरिकै धावन बोल्यो ओ महराज कनौजीराय १३ मोहिं पठायो पृथइराज ने औ यह कह्यो बात समुझाय॥ होला दैदें संयोगिनि का तो हम लौटि धामको जायँ १४ नाहितो बचिह ना कनउजमाँ जो विधि मापु वचावें आय ।।