पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३००

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वन्द्रावलि की चौथि । २६७ राम स्मामिलि दर्शन देवें इच्छा यही भवानीकन्त १५५ इति श्रीलखनऊनिवासि (सी, आई, ई) मुन्शी नवलकिशोरात्मज बाबू प्रयागनाराणजीकी आज्ञानुसारउन्नामप्रदेशान्तर्गतपॅडरीकलांनिवासि मिश्रवंशोद्भववुध कृपाशङ्करसूनु पं० ललिताप्रसादकृत ऊदनवन्धनवर्णनोनामप्रथमस्तरंगः ॥१॥ सवैया॥ ध्यावत तोहिं सरस्वति मातु करो निज सेवकपै अब दाया। शारद नारदके पद ध्याय मनावत तोहिं सदा रघुराया ।। गावतहों गुण गोविंद के अरु पावतहों नितही मनभाया । नावतही शिर बारहिं बार करो ललिते कर मातु सहाया ? सुमिरन । दोउ पद ध्यावों जो बर पावों सो सुनिलेउ शारदा माय ॥ जस जस गावों मैं आल्हा को तसतस सुखी होउँ अधिकाय ? माता भ्राता त्राता ताता नाता तुममा दीन लगाय॥ तारो बोरो जो अब चाहो हमतो शरण तुम्हारी माय २ वेद पुराणन श्रुति असमृति में जाँचा साँचा हमअधिकाय ।। तुम्ही भवानी शारद मइया सेबका सार परी दिखराय ३ तव पद बिछुरे उर हमरे ते मूरखचन्द कहें सब गाय ।। ताते विठुरै पद उरते ना यह वर मिलै शारदामाय ४ छूटि सुमिरनी गै शारद के अब आगे के सुनो हवाल। मलखे आल्हा बौरी जैहैं हैहैं तहां युद्ध विकराल ५ भय कयामसंग। उदय दिवाकर भे पूरवमें किरणनकीनजगत उजियार।। हुकुम पायक मलखाने को सवियाँ फौज भई तय्यार ? सजि पचशन्दागा आल्दाका तापर होत भयो असवार ।।