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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३००

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चन्द्रावलि की चौथि। २९७

राम रमामिलि दर्शन देवैं इच्छा यही भवानीकन्त १५५

इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आई,ई) मुन्शी नवलकिशोरात्मज बाबू
प्रयागनाराणजीकी आज्ञानुसारउन्नामप्रदेशान्तर्गतपॅड़रीकलांनिवासि
मिश्रबंशोद्भवबुध कृपाशङ्करसूनु पं॰ ललिताप्रसादकृत
ऊदनबन्धनबर्णनोनामप्रथमस्तरंगः ॥१॥


सवैया॥

ध्यावत तोहिं सरस्वति मातु करो निज सेवकपै अब दाया।
शारद नारदके पद ध्याय मनावत तोहिं सदा रघुराया॥
गावतहौं गुण गोबिंद के अरु पावतहौं नितही मनभाया।
नावतहौं शिर बारहिं बार करो ललिते कर मातु सहाया १

सुमिरन॥


दोउ पद ध्यावों जो बर पावों सो सुनिलेउ शारदा माय॥
जस जस गावों मैं आल्हा को तसतस सुखी होउँ अधिकाय १
माता भ्राता त्राता ताता नाता तुममा दीन लगाय॥
तारो बोरो जो अब चाहो हमतो शरण तुम्हारी माय २
बेद पुराणन श्रुति असमृति में जाँचा साँचा हमअधिकाय॥
तुम्ही भवानी शारद मइया सबका सार परी दिखराय ३
तब पद बिछुरे उर हमरे ते मूरखचन्द कहैं सब गाय॥
ताते बिछुरैं पद उरते ना यह बर मिलै शारदामाय ४
छूटि सुमिरनी गै शारद कै अब आगे के सुनो हवाल॥
मलखे आल्हा बौरी जैहैं ह्वैहैं तहां युद्ध बिकराल ५

अथ कथाप्रसंग॥


उदय दिवाकर भे पूरवमें किरणनकीनजगत उजियार॥
हुकुम पायकै मलखाने को सवियाँ फौज भई तय्यार १
सजि पचशब्दा गा आल्हाका तापर होत भयो असवार॥