पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३२५

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॥ आल्हखण्ड । ३२२ सुनिके बातें ये सखियन की वेटी चली तड़ाकाधाय ४६ भा मटमेरा तहँ. इन्दल का देखत रूपगई ललचाय ॥ मन अरु नैना यकमिल गे सखियनदेखिगई सकुचाय ४७ फिरिफिरिचितवैदिशिइन्दलके हनवन करें गंगको वारि ॥ विधिउ न जाने गति नारी की दशरथ मरे नारिसों हारि ४८ सोई नारी फिरि फिरि चितवै कैसी करें श्राजु त्रिपुरारि ।। इन्दल निकले जलके बाहर सोऊनिकलिपरीसुकुमारि ४६ दिह्यो दक्षिणा दिज देवनको दोऊ मोहवे के सरदार ॥ तहते चलिभे फिरि तम्बू को देखत मेला केरि वहार ५० चचा भतीजे दोऊ ठाकुर तम्बुन फेरि पहूँचे आय ॥ वेटी प्यारी अभिनन्दन की सोऊ चली तहाँ ते धाय ५१ आयकै पहुँची सो तम्बुन में औ सखियनसों लगीवतान ।। ऐस रँगीला और सजीला मेला नहीं दूसरो ज्यान ५२ करिके जादू याको हरिये करिये सखी स्वई अवसाज ॥ मन नहिं हटको हमरो माने ना अब करें तुम्हारी लाज ५३ सवैया॥ होत अकाज न लाजरहै यह राज समाज लखे दुख छौ । जो कुलकानि न आनिकरों कुलटा उलटा म्बहिलोगवतावै।। भावे यहै हमको सजनी रजनी विन पीतम आनि मिलावै । पावै जबै ज्यहि नेहलग्यो ललिते मनमें तवहीं मुखमा ५४ 7 मुनिके बाते चितरेखा की सखियनकहा बहुतसमुझाय॥ धीरज राखो अपने मन माँ पीतम मिली तुम्हारोआय ५५ इतना कहिके संग सहेली हेली तुरत भई तय्यार ।