सुनिकै बातैं ये सखियन की बेटी चली तड़ाकाधाय ४६
भा मटमेरा तहँ इन्दल का देखत रूपगई ललचाय॥
मन अरु नैना यकमिल ह्वैंगे सखियनदेखिगई सकुचाय ४७
फिरिफिरिचितवैदिशिइन्दलके हनवन करैं गंगको बारि॥
विधिउ न जानै गति नारी की दशरथ मरे नारिसों हारि ४८
सोई नारी फिरि फिरि चितवै कैसी करैं आजु त्रिपुरारि॥
इन्दल निकले जलके बाहर सोऊनिकलिपरीसुकुमारि ४९
दिह्यो दक्षिणा द्विज देवनको दोऊ मोहबे के सरदार॥
तहँते चलिभे फिरि तम्बू को देखत मेला केरि बहार ५०
चचा भतीजे दोऊ ठाकुर तम्बुन फेरि पहूँचे आय॥
बेटी प्यारी अभिनन्दन की सोऊ चली तहाँ ते धाय ५१
आयकै पहुँची सो तम्बुन में औ सखियनसों लगीबतान॥
ऐस रँगीला और सजीला मेला नहीं दूसरो ज्वान ५२
करिकै जादू याको हरिये करिये सखी स्वई अबसाज॥
मन नहिं हटको हमरो मानै ना अब करैं तुम्हारी लाज ५३
सवैया॥
होत अकाज न लाजरहै यह राज समाज लखे दुख छावै।
जो कुलकानि न आनिकरों कुलटा उलटा म्बहिंलोगबतावै॥
भावै यहै हमको सजनी रजनी बिन पीतम आनि मिलावै।
पावै जबै ज्यहि नेहलग्यो ललिते मनमें तबहीं सुखआवै ५४



सुनिकै बातैं चितरेखा की सखियनकहा बहुतसमुझाय॥
धीरज राखो अपने मन माँ पीतम मिली तुम्हारो आय ५५
इतना कहिकै संग सहेली हेली तुरत भईं तय्यार॥