पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३२६

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इन्दलहरण । ३२३ लय अलवेली संग सहेली आई देखन गङ्ग बहार ५६ ऊदन इन्दल देवा ठाकुर देवा ठाकुर तीनों गये तहाँपर आय ॥ नाव मँगायो मल्लाहन ते बैठयोसुमिरि शारदामाय ५७ बैठी नावन में चितरेखा बेखा नटिनिन केरि बनाय ।। काह बता, हम लेखा त्यहि देखा रूप नहीं है भाय ५८ पै अवरेखा चितरेखा को लेखा कामदेव की नारि ।। उठे तरङ्गे तहँ गंगा की जंगा करें वारिसों बारि ५६ लेकै पुरिया भैरोंवाली ऊदन उपर दीन सो डारि॥ वीर महम्मद की पुरिया को देवा उपर चलावा नारि ६० नजर बन्दमै जब दूनों के तुरतै इन्दल लीन उतारि ।। सुवा वनायो सो इन्दल को पिंजरा लीन तड़ाका डारि ६१ उतरिक नावनसों जल्दी सो तम्बुन गई तड़ाका आय ॥ उतरी जादू जब ऊदन की तबनहिं इन्दल परेदिखाय ६२ जब नहिं दीख्यो तह इन्दलको ऊदन तुरत गये घबड़ाय ।। जार मँगाये तह लोहे के सो गंगा माँ दये डराय ६३ मच्छ कच्छ बहुतक फॅसिआये नहि इन्दल परे दिखाय ॥ तिल निल ढूंढा ई मेला में ऊदन देवा संग लिवाय ६४ पता न पायो जव इन्दल को तम्वुन फेरि पहूँचे आय ॥ कही हकीकति तहँ माहिल ते नाहर उदयसिंह तहँ गाय ६५ सुनिके बातें उदयसिंह की माहिल वोले बचन बनाय॥

को अंदेशा कछु जियरेना आल्है द्याव वहाँ समुझाय ६६

जादू के के कोउ इन्दल का साँचो लियो बनाफरराय ।। घरते है फिरि तुम हूंढ्यो लाँते कूच देठ करवाय ६७ इतना सुनिक उदयसिंह ने डंका कूच दीन वजवाय ॥