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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३२७

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आल्हखण्ड। ३२४

पांव रोज को धावा करिकै दशहरिपुरै पहूँचे आय ६८
ऊदन रहिगे एक कोस में माहिल गये अगाड़ी धाय॥
बड़ी खातिरी आल्हा करिकै अपने पास लीन बैठाय ६९
आल्हा बोले तहँ माहिल ते मामा हाल देउ बतलाय॥
ऊदन देबा इन्दल बेटा तीनों रहे कहांपर भाय ७०
हम नहिं देखत इन तीनों को ताते चित्त बहुत घबड़ाय॥
इतना सुनिकै माहिल बोले साँची सुनो बनाफरराय ७१
ख्यलै नेवारा गे नदिया में ऊदन इन्दल साथ लिवाय॥
ऊदन देबा इकमिल ह्वैकै औ इन्दलको दीन बहाय ७२
टरिजा टरिजा माहिल मामा धरती खोदि लेऊँ गड़वाय॥
ऐसी बातैं फिरि बोले ना ठाकुर साँच दीन बतलाय ७३
है मर्दाना ऊदन बाना मामा काह गये बौराय॥
किहे दिल्लगी की साँची है हमरोचित्त बहुत घबड़ाय ७४
इतना सुनिकै माहिल बोले साँची कहा बनाफरराय॥
पोथा पढ़िकै धरिदीन्ह्यो सब अक्किल तुम्हरी गई हिराय ७५
कौनिअदावति नलपुष्कलकी भारत पढ़े बनाफरराय॥
कैसि दुर्दशा नलकी कीन्ह्यो पुष्कलनलकोजुआँखिलाय ७६
बिना वस्त्र के महराजा भे साजा सबै साज कर्तार॥
तिनकी प्यारी दमयन्ती जो सोऊ छूटिगई त्यहि बार ७७
त्यहि दमयन्ती के ब्याहे में आये पवन अग्नि सुरराज॥
उद्यम कीन्ह्यो गल ब्याहे को चाहे दूत भये नलराज ७८
ब्याह न कीन्ह्यो दमयन्ती ने बिन्ती बहुत कीन नलराज॥
गन्ती कीन्ह्यो दमयन्ती ना लज्जितभये तहाँ सुरराज ७९
बारह बरसै बनबाजी मा राजी भये इन्द्र महराज॥