पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

इन्दलहरण । ३२५ आल्हा भने साँची जानो ऊदनकीन्ह साँचयहकाज ८० इतना मुनिके आल्हा ठाकुर गर्लई हाँक दीन ललकार। ॥ टरिजा टरिजा उरई वाले तारे चुगुलिन का बयपार ८१ साँची साँची आल्हा ठाकुर तुम्हरो इन्दल गयो हिराय ।। कहाँ असाँचा पाल्हा ठाकुर साँचा सहों पुत्रका घाय ८२ करों दिल्लगी अस कबहूँ ना साँची सुनो बनाफरराय ।। ऊदन बोले ह्याँ देवा ते हमरो चित्त बहुत घबड़ाय ८३ दशहरिपुरवा माहिल पहुँचे कैसी खबरि सुना जाय ।। पुत्र शोक सम दुख दूसर ना जानतगाथ भली तुममाय ८४ पुत्र शोक सों दशरथ मरिगे कीरति रही जगत में भ्राज ।। कीरतिसागर भट नागर जे आगर सवैगुणन रघुराज ८५ तेई खेया अब नैया के भैया काह करें धौं आज॥ यहु दिन आये लग ध्यावै जो कलयुगस्वऊभक्तशिरताज ८६ सोई कलयुग के ऊदन हम साँचे कर्म कीन रघुराज ।। दया न छोड़ा दिन गाइन ते पीठिन दीन प्राणकाज ८७ नहिं अभिमानी बातें ठानी बालक विष साथ महराज ॥ परम पियारे द्विज तुम का निर्मलएकऋचाज्यहिभ्राज ऐसी स्तुति ऊदन कीन्यो देवा चलत भयो ततकाल ।। आयकै पहुँच्यो त्यहि मंदिर में ज्यहिमें देशराजको लाल ८६ ठाढ़े दीख्यो जब देवा को चलिमा उरई का सरदार ।। भल मल रोंका आल्हा ठाकुर करिकै बहुतभांति सतकार ६० पेनहिं मान्यो जब माहिल ने आयसु दियो बनाफरराय ।। देखिकै सूरति फिरि देवा की भाल्दागये बहुत घबड़ाय ६१ कैसी गुजरी है तीरथ में देवा साँच देय बतलाय ।।