पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३२९

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भारहखण्ड। ३२६ परम पियारो पुत्र हमारो इन्दल राख्यो कहाँ छिपाय ६२ पूत न होवें बहु कलयुग में या भूतन को अधिकार ।। सेव करावें बालापन में ज्वाने भये वसैं ससुरार ६३ पूत सपूतो इन्दल प्यारो कहँ पर मैनपुरी चौहान ।। इतना सुनिक देवा बोला साँची कहौं शपथभगवान ६४ वंश पिथौरा के नजदीकी आहिन सत्य बनाफरराय ॥ आल्हा ऊदन मलखे सुलखे भाई सरिस चारिहू भाय ६५ कमती जानैं जो काहू को तो म्वहिं सजादेय भगवान ।। कोऊ लैगा छलि जादू सों इन्दल तुम्हरो पूत परान ६६ ऊदन बिगड़े तहँ मेला में जैवे पता लगावन काज॥ तिल तिल पृथ्वी मेला ढूँढा भारी भीर तहाँ महराज ६७ . पता न लाग्यो जब इन्दल को माहिल कहा तबै समुझाय।। आल्हा ठाकुर को समुझावन ऊदन कूच देउ करवाय ६८ कहा मानिकै तव माहिल का डांड़े परा लहुरवा भाय ।। जौन देश में इन्दल ढहैं ऊदन लेहैं खोज लगाय ६६ बात सुनिकै ये देवा की आल्हा बहुत गये घबड़ाय ॥ जो कछु भापा माहिल ठाकुर साँची जना वनाफरराय १०० पुत्र शोच सों उर धड़कत भो जियरे धीर धरा ना जाय । भाल्हा बोले तब देवा ते तुमऊदनको लयो बुलाय १०१ उनहीं पायन देवा चलिभा ऊदन खबरि दीन बतलाय ।। बड़े शोच में बड़ भैया है तुमकोतुरतबुलायनिभाय १०२. इतना सुनिक ऊदन चलिमे सम्मुख गये तड़ाका आय ।। आवत जान्यो जब ऊदन को आल्हाशीशलीननिहुराय १०३ भौदिशि दीस्यो नाउदनके मानों शत्रु ठाद भो आय ॥ . 1