ऊदन मकरँद को रानी लखि खातिरफेरिकीनअधिकाय ३७
रानी पूछा फिरि मकरँद ते योगी बन्यो पूत कस आय॥
इतना सुनिकै मकरँद ठाकुर इन्दलहरण गयोसबगाय ३८
सुनिकै बातैं सब मकरँद की रानी बार बार पछिताय॥
लिखी विधाता की मेटै को औ दैयागतिकही न जाय ३९
पूत सपूतो इन्दल खोयो मातै पितै दुःख अधिकाय॥
बिधना डारै अस बिपदा ना कोउ न सहै पुत्रका घाय ४०
भरे घुचघुचा सुनि ऊदन के नैनन नीर परे दिखराय॥
उठिकै ऊदन रनिवासे ते देबी धाम पहुँचे आय ४१
बेठिकै मठियामा बघऊदन सुमिर्यो तहाँ शारदामाय॥
ध्यान लगायो जगदम्बा का सब अवलम्बा दीनभुलाय ४२
शोच भूलिगा तब ऊदन का मनमाँ खुशीभई अधिकाय॥
तहँते चलिकै बघऊदन फिरि महलन अटातुरतही आय ४३
बनी रसोई रनिवासे में भोजन कीन सबन सुखपाय॥
राति अँध्यरिया फिरि आवत भै सोये बिकट नींदको पाय ४४
बलखबुखारे निशि स्वपना माँ पहुँचा देशराजका लाल॥
सोयकै जाग्यो बघऊदन जब लाग्यो सबतेकहनहवाल ४५
बलख बुखारे के जैबे को तीनों बीर भये तय्यार॥
कान्तामलहू सँग में ह्वैगा चारों चलतभये सरदार ४६
अटक उतरिकै काबुल ह्वैकै पहुँचे बलखबुखारे जाय॥
शहर पनाहै चौगिर्दा ते बड़बड़महलपरैं दिखलाय ४७
साँचे योगी चारो बनिकै पहुँचे शहर बीच में आय॥
बाजी खँझड़ी तहँ देवा की मकरॅद डमरू रहा बजाय ४८
कर इकतारा कान्तामल के ऊदन बँसुरी रहा बजाय॥
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इन्दलहरण। ३३५
