पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३३८

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इन्दलहरण । ३३५ ऊदन मकरंद को रानी लखि खातिस्फेरिकीनअधिकाय ३७ रानी पूछा फिरि मकरंद ते योगी बन्यो पूत कस आय ॥ इतना सुनिक मकरंद ठाकुर इन्दलहरण गयोसवगाय ३८ सुनिक बातें सब मकरंद की रानी बार वार पचिताय ।। लिखी विधाता की मटै को ओ दैयागतिकही न जाय ३९ यूत सपूतो इन्दल खोयो मात पिते दुःख अधिकाय ॥ विधना डारै अस विपदा ना कोउ न सह पुत्रका घाय ४० भरे घुचघुचा सुनि ऊदन के नैनन नीर परे दिखराय ।। उठिकै ऊदन रनिवासे ते देवी धाम पहुँचे आय ४१ बेठिकै मठियामा वघऊदन सुमिस्यो तहाँ शारदामाय ॥ ध्यान लगायो जगदम्बा का सब अवलम्बा दीनभुलाय ४२ शोच भूलिगा तब ऊदन का मनमाँ खुशीभई अधिकाय ।। तहते चलिक बघऊदन फिरि महलन अटातुरतही प्राय ४३ बनी रसोई रनिवासे में भोजन कीन सवन सुखपाय ।। राति अँध्यरिया फिरि आवत भै सोये विकट नींदको पाय ४४ बलखबुखारे निशि स्वपना माँ पहुँचा देशराजका लाल ।। सोयकै जाग्यो वरऊदन जब लाग्यो सबतेकहनहवाल ४५ बलख बुखारे के जैबे को तीनों बीर भये तय्यार ।। कान्तामलहू सँग में बैगा चारों चलतभये सरदार ४६ अटक उतरिक काबुल हैकै पहुँचे वलखबुखारे जाय ॥ शहर पनाहै चौगिदी ते बड़बड़महलपर दिखलाय ४७ साँचे योगी चारो बनिकै पहुँचे शहर बीच में आय ।। बाजी झड़ी तहँ देवा की मकरंद डमरू रहा बजाय ४८ कर इकतारा कान्तामल के ऊदन वसुरी रहा वजाय ।।