पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३४

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२६ संयोगिनिस्वयम्बर। दुखी जो बाम्हन ह्याँपर होइहैं तो सब क्षत्री धर्म नशाय ॥ सुनिक बातें पृथइराज की भा मन खुशी चंदेलाराय ४६ डोला मँगायो संयोगिनि को सो रण खेतन दीन धराय ।। देखिकै डोला संयोगिनि को बोला तुरत पिथौराराय ५० लड़ो सिपाही दिल्लीवाले डोला तुस्त लेउ उठवाय ॥ जीतिकै चलिही जोकनउजते चौगुन तलब देव घरजाय ५१ दै दै पानी रजपूतन को पिरथी सव को दीन जुझाय।। फिरि मुकुन्द औ रतीभानको मुची परो बरोबरि आय ५२ दोऊ बराबरि के क्षत्री हैं दोऊ समरधनी बलवान ॥ बँचि सिरोही ली मुकुन्द ने करिकै रामचन्द्र को ध्यान ५३ हनिकै मारा रतीभान को ठाकुर लीन्यों वार बचाय ।। भो ललकारा फिरि मुकुन्दको अब तुम खवरदार लैजाय ५४ वार हमारी सों बचिहाना तुमका लावा काल बुलाय ॥ यह कहि मारा तलवारी को सो फिरिपरी ढालपरजाय ५५ बचिगा ठाकुर दिल्ली वाला ज्यहिका राखिलीन भगवान।। सो फिरि बोला रतीमान सों करिकै मनै बड़ा अभिमान ५६ कियो लड़ाई है लरिकन सों .कब हुन परा ज्यानते काम ।। सँभरिकै बैठो अब घोड़ा पर तुमको पठेदेउँ यमधाम ५७ बँचिकै मारा रतीभान को सोऊ लीन ढाल की-वार ॥ मुठिया रहिगै कर मुकुन्द के. रणमा टूटि गिरी तलवार ५८ गद्दी कटिंगै मखमल वाली औ फटिमई गैंड़की ढाल ॥ रिसहा द्वैगा रतीभान तहँ दोऊ नैन भये तब लाल ५६ ऐंचि सिरोही को कम्मर सों मारा रतीभान वलबान ।। गिरा तडाका शिर धरती माँ मरिगा तुरत मुकुन्दावान ६०