सजे बराती तहँ ठाढ़े थे आल्हा कूचदीनकरवाय १४३
चलिकै पहुँचे फिरि नरवरगढ़ ऊदन मिले तहां पर आय॥
लैकै फौजे मकरन्दा मिलि आल्हा सहितचलेहर्षाय १४४
अटक उतरिकै कावुल ह्वैकै पहुँचे मास अन्त में जाय॥
रहो बुखारो आठ कोस जब तब टिकिरहे बनाफरराय १४५
टिकिगा लश्कर रजपूतन का क्षत्रिन छोरि धरे हथियार॥
आल्हा ठाकुर के तम्बू माँ बैठे बड़े बड़े सरदार १४६
बोले पण्डिन तब आल्हा ते तुम सुनि लेउ बनाफरराय॥
ऐपनवारी की बिरिया है रूपन बारी देउ पठाय १४७
इतना सुनिकै रूपन बोला दोऊ हाथ जोरि शिरनाय॥
हम नहिं जैहैं बलखवुखारे अवकी आनदेउपठवाय १४८
इतना सुनिकै मलखे बोले रूपन साँच देउ बतलाय॥
जौने घोड़ा का जी चाहै तौनै देयँ तुरत मँगवाय १४९
घोड़ करि लिया रूपन माँग्यो मलखे तुरत दीन कसवाय॥
ऐपनवारी बारी लैकै बैठा घोड़ पीठि में जाय १५०
ढाल खड्ग लै मलखाने ते रूपन कूच दीन करवाय॥
डेढ़ पहर के फिरि अर्सा मा पहुँचाराजद्वार पर जाय १५१
हुकुम दर्ररै हुकुम दर्ररै नाहर घोड़े के असवार॥
कहाँ तै आये औ कहँ जैहै कहँ है देश रावरे क्यार १५२
इतना सुनिकै रूपन बोला तुमते साँच देयँ बतलाय॥
नगर महोबाते आयन हम इन्दलब्याहकरनकोभाय १५३
ऐपनवारी हम लै आये रूपन बारी नाम हमार॥
खबरि जनावो महराजा को हमरो नेग देयँ अवद्वार १५४
इतना सुनिकै द्वारपाल कह रूपन बारी बात सुनाय॥
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आल्हखण्ड। ३४४
