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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३४८

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इन्दलहरण। ३४५

काह नेग द्वारे को चहिये सोऊ देयँ आप बतलाय १५५
रूपन बोला द्वारपाल सों यह तुम खबरि सुनावो जाय॥
एक पहर भर चलै सिरोही यहही नेग देयँ पठवाय १५६
सुनिकै बातैं ये बारी की आरी द्वारपाल अधिकाय॥
शोचि समझिकै महराजा सों रूपन कथा सुनाई जाय १५७
इतना सुनिकै अभिनन्दन ने हंसामल को लयो बुलाय॥
पकरिकै लावो त्यहि बारी को द्वारे जौन रहा वर्राय १५८
इतना सुनिकै हंसामल ने अपनी लई ढाल तलवार॥
औरो क्षत्री चलि ठाढ़े में अपनेबाँधिबाँधिहथियार १५९
द्वारे देखैं जब बारी को आरी भरे सिपाही ज्वान॥
भीर देखिकै रूपन बारी लाग्योकरन घोरघमसान १६०
चली सिरोही भल द्वारे पर औ बहिचली रक्त की धार॥
रूपन बारी के मुर्चा पर अंधा धुंध चलै तलवार १६१
रूपन मारै तलवारी सों घोड़ा करै टाप की मार॥
बड़े लड़ैया काबुल वाले मनसों गये तहाँपर हार १६२
धर्म बनाफर का जाहिर है जिनके जपै तपै का काम॥
विजय अधर्मिन की दीखी ना रावण कीन बहुतसंग्राम १६३
कंस सुयोधन जरासंध अरु अधरम रूप मरा शिशुपाल॥
काल कलेवा सबको कीन्ह्यो रहिगा धर्मएक सबकाल १६४
ताते धर्मी आल्हा ठाकुर रूपन खूब करै तलवार॥
देखि वीरता यह रूपन की हंसा कहा बचनललकार १६५
सँभरिकै बैठै अब घोड़ा पर वारी भली मचाई रार॥
जियत न जैहै दरवाजे ते हमरी देखि लेय तलवार १६६
इतना सुनिकै रूपन बोला क्षत्री गानो कही हमार॥