पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

आल्हखण्ड । ३४६ नेग आपनो हम भरिपावा राजन आय आपके द्वार १६७ दायज लेहैं आल्हा गकुर अब हम जान चहत सरदार।। इतना कहिके रूपन वारी फाटक निकरिगयोवापार १६८ मारु गारू कहि क्षत्री दौरे रूपन घोड़ दीन दौराय ॥ आयकै पहुँच्यो त्यहि तम्बू में ज्यहि में बैठ बनाफरराय १६६ खबरि सुनाई ह्याँ आल्हा को हाँपर शूर लागि पछिताय ।। तक अभिनन्दन सब लरिकनते बोला दोऊ मुजा उठाय १७० बाजें डा अइतङ्का के लश्कर सर्व होय तय्यार। जान न पा मोहवे वाले मारो ढूंढि हूँदि सरदार १७१ हुकुम पायकै महराजा को सातो पुत्र भये तय्यार। झीलम बखतर पहिरि सिपाही हाथम लई ढालतलवार १७२ अंगद पंगद मकुना भौरी सजिगे शेतवरण गजराज ॥ धरिगे हौदा तिन हाथिनपर क्षत्री चढे समरके काज १७३ को गति बरणे तह घोड़न के जिनार चढ़े शूर शिरताज ।। सजिगा हाथी अभिनन्दन का तार वैठिगयो महराज १७४ सुमिरि भवानी सुत गणेशको राजा कूच दीन करवाय॥ खर खर खर खर के रथ दौरे चवह धुरीरहीं चिल्लाय १७५ मारु मारु करि मौहरि बानी बाजी हाव हाव करनाल । मारू वाजा सुनि बोलत भा बेटा देशरान का लाल १७६ जनु अभिनन्दन चढ़िावत है। लक्षण जानि पर यहिकाल ॥. हसिकै बोला मलखाने ते बेटा देशराज का लाल १७७ सजिये दादा मलखाने आ देवा होउ आप तय्यार।। और सिपाही जे मोहवे के तेऊ बाँधि लेय हथियार १७८ सुनिक बातें वघऊदन की सत्रियाँ शूर भये तय्यार ।। ।