नेग आपनो हम भरिपावा राजन आय आपके द्वार १६७
दायज लेहैं आल्हा ठाकुर अब हम जान चहत सरदार॥
इतना कहिकै रूपन बारी फाटक निकरिगयोवापार १६८
मारु मारू कहि क्षत्री दौरे रूपन घोड़ दीन दौराय॥
आयकै पहुँच्यो त्यहि तम्बू में ज्यहि में बैठ बनाफरराय १६९
खबरि सुनाई ह्याँ आल्हा को ह्याँपर शूर लागि पछिताय॥
तक अभिनन्दन सब लरिकनते बोला दोऊ भुजा उठाय १७०
बाजैं डङ्का अहतङ्का के लश्कर सबै होय तय्यार॥
जान न पावैं मोहबे वाले मारो ढूँढ़ि ढूँढ़ि सरदार १७१
हुकुम पायकै महराजा को सातो पुत्र भये तय्यार॥
झीलम बखतर पहिरि सिपाही हाथम लई ढालतलवार १७२
अंगद पंगद मकुना भौंरा सजिगे श्वेतवरण गजराज॥
धरिगे हौदा तिन हाथिनपर क्षत्री चढ़े समरके काज १७३
को गति बरणै तहँ घोड़न कै जिनपर चढ़े शूर शिरताज॥
सजिगा हाथी अभिनन्दन का तापर बैठिगयो महराज १७४
सुमिरि भवानी सुत गणेशको राजा कूच दीन करवाय॥
खर खर खर खर कै रथ दौरे चहवह धुरीरहीं चिल्लाय १७५
मारु मारु करि मौहरि बाजीं बाजीं हाव हाव करनाल॥
मारू बाजा सुनि बोलत भा बेटा देशराज का लाल १७६
जनु अभिनन्दन चढ़िआवतहै लक्षण जानि परैं यहिकाल॥
हँसिकै बोला मलखाने ते बेटा देशराज का लाल १७७
सजिये दादा मलखाने अब देवा होउ आप तय्यार॥
और सिपाही जे मोहबे के तेऊ बाँधि लेयँ हथियार १७८
सुनिकै बातैं बघऊदन की सबियाँ शूर भये तय्यार॥
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आल्हखण्ड। ३४६
