पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३७०

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लाखनिका विवाह । ३६६ दीन अबाहिर त चिट्ठीको राजा पढ़नलाग त्यदिवार १० पदिक चिट्ठी गंगाधरकै टीका तुरत दीन लौटायः।। तवे जवाहिर मन खिसियाने पहुँचे फेरि कनोजे जाय ११ लागि कचहरी तह जयचँदकै भारी लाग राज दरबार ।। भाल्हा ऊदन तहँ बैठे हैं बेठे बड़े बड़े सरदार १२ दीन जवाहिर तहँ चिट्ठीको जयचंदनाँकुआँकुपदिलीन । पढ़िके चिट्ठी वापस दीन्हो हाँहूँ कळू नहीं नृप कीन १३ तवै जवाहिर यह बोलत भा दोऊ हाथजोरि शिरनाय ।। लाखनि कारे हैं तुम्हरे घर यह हमआयनपतालगाय १४ आयसु पात्रे महराजा को तो हम टीका देय चढ़ाय॥ इतना सुनिकै जयचंद बोले तुमते साँचदेय बतलाय १५ न्याह न करिखे हम तुम्हरे घर हाँपर जादू को अधिकाय ।। इतना सुनिक ऊदन बोले दोऊ हाथ जोरि शिस्नाय १६ टीका भायो घर तुम्हरे है राजन लीजै आप चदाय ।। कौन दुसरिहा नृप तुम्हरो है ज्यहिभयकरौ कनौजीराय १७ औरो बोले त्यहि समया मा साँची कहाँ बनाफरराय ।। सम्मत सब का जयचंद लेके तव पण्डितते कहा सुनाय १८ देखो साइति यहि समया.मा टीका लीनजाय चढवाय ।। सुनिक वातें महराजा की पंडित साइति दीन बताय १६ पाख अँध्यरिया तिथि तेरसिऔ फागुन.मास सुनो महराज । भौरिन केरी शुभ साइति है है सुफल आपके काज २० पै यहि विरिया शुभ साइति में टीका आप लेउ चढ़वाय ।। इतना सुनिके महराजा ने महलन खबरिदीन पठवाय २१ सवार पायके महरानी ने चौका तुरत लीन लिपवाय