पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३७१

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आल्हखएटा ३७० चौक पुराई गजमोतिन सों चन्दन पीढ़ा दीन डाय २१ 'सापर बैठे लखराना जब गावन लगीं सुहागिल आय॥ नया जवाहिर गंगाधर का तहँ पर टीका दीन चढ़ाय २३ वीरा दीन्यो जब लाखनि को सम्मु व छींक भई तत्र आय॥ रानी तिलका त्यहि समया में बोली राजे वचन सुनाय २३ व्याह न करिव हम बूंदी मा टीका आप देय लौटाय ।। परम पियारे लखराना के वीरा लेत छींक आय २५ इतना सुनिके ऊदन वोले दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ॥ जो कछु होवै इनके जीका हमरो लीन्यो मूड़कटाय २६ टीका फेरथो महरानी ना जान्यो शकुन छींककामाय॥ भयो सखरमा यहि मानुप का पौवन नाक गिगवतजाय २७ यहिकी छींकनका अशकुन ना माता भरम देउ विसराय । राजा बोले पिरि रानी ते साँची कहै बनाफरराय २८ जो अस हालत सत्रहोती ना टीका तुरत देत लौटाय।। इतना सुनिकै तिलका रानी अपनो भरमदीन विपराय २६ फेरि जवाहिर सत्र नेगिन को सुवरण कड़ा दन पहिराय।। जितनी सामारह टीका की सो आँगनमा दीन धराय ३० राजाजयद उन नेगिन का सुवरण कड़ा दीन पहिराय। साल दुसाला मोहनमाला इनहुन दीन तहाँपर आय ३१ बड़ी खुशानी दुहुँ .तरफाके नेगिन मनै भई अधिकाय । विदामांगिक चला जवाहिर बूंदी शहर पहूँचा जाय ३० हाल बतायो महराजा का जाविधि टीका अयो चढ़ाय। भई खुशाली गंगाधर के फूले अंग न सके . समाय ३३ नामी राजा कनउज वाले वेटा कीनकाज खबजाय ।