चौक पुराई गजमोतिन सों चन्दन पीढ़ा दीन डराय २२
तापर बैठे लखराना जब गावन लगीं सुहागिल आय॥
बेटा जवाहिर गंगाधर का तहँ पर टीका दीन चढ़ाय २३
बीरा दीन्यो जब लाखनि को सम्मुख व छींक भई तब आय॥
रानी तिलका त्यहि समया में बोली राजै बचन सुनाय २४
व्याह न करिबे हम बूँदी मा टीका आप देयँ लौटाय॥
परम पियारे लखराना के वीरा लेत छींकभै आय २५
इतना सुनिकै ऊदन बोले दोऊ हाथ जोरि शिरनाय॥
जो कछु होवै इनके जीका हमरो लीन्ह्यो मूड़कटाय २६
टीका फेर्यो महरानी ना जान्यो शकुन छींककामाय॥
भयो सखरमा यहि मानुष का पौवन नाक गिरबतजाय २७
यहिकी छींकनका अशकुन ना माता भरम देउ बिसराय॥
राजा बोले पिरि रानी ते साँची कहै बनाफरराय २८
जो अस हालत सबहोती ना टीका तुरत देत लौटाय॥
इतना सुनिकै तिलका रानी अपनो भरमदीन बिसराय २९
फेरि जवाहिर सब नेगिन को सुवरण कड़ा दीन पहिराय॥
जितनी सामारह टीका की सो आँगनमा दीन धराय ३०
राजाजयचॅद उन नेगिन का सुवरण कड़ा दीन पहिराय॥
साल दुसाला मोहनमाला इनहुन दीन तहाँपर आय ३१
बड़ी खुशानी दुहुँ तरफाके नेगिन मनै भई अधिकाय॥
बिदामांगिकै चला जवाहिर बूॅदी शहर पहूँचा जाय ३२
हाल बतायो महराजा का जाविधि टीका अयो चढ़ाय॥
भई खुशाली गंगाधर के फूले अंग न सके समाय ३३
नामी राजा कनउज वाले वेटा कीनकाज खबजाय॥
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आल्हखण्ड। ३७०
