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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३७८

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लाखनिका बिवाह। ३७७

हमैं न भाई यह आली है तुमते साँच दीनबतलाय १०४
वयस बराबरिकी मालिनि हौ अब गाढ़े माँ होउ सहाय॥
राति अँधेरिया की विरिया है खन्दकमोहिंदेइ दिखराय १०५
मोरे कारण महराजा सुत कैदी भये यहांपर आय॥
उत्तम शय्या केरि स्ववैया खन्दकदीन बाप डरवाय १०६
मोहिं दिखावै त्यहि क्षत्री को जियरा धीरधरा ना जाय॥
इतना सुनिकै मालिनि दौरी पलकीलाई तुरतलिबाय १०७
बेठि पालकी मा दूनो फिरि खन्दक पास गईं नियराय॥
दीन अशर्फी तहँ चकरन का तिनफिरतहाँदीनपहुँचाय १०८
कुसुमा बोली तहँ लाखनि ते स्वामी बार बार बलिजायँ॥
मोहिं अभागिनि के कारणसों तुपपरबिपतिपरीअधिकाय १०९
अब तुम निकरो यहि खन्दकते रस्सा देउँ कन्त लटकाय॥
इतना सुनिकै ऊदन बोले तुमते साँचदेयँ बतलाय ११०
जो तुम चाहौ लखराना को फौजन खबरि देउ पहुँचाय॥
चहैं सहारा जो नारी को तो सब क्षत्रीधर्म नशाय १११
शंका लावो मन अन्तर ना महलन जाउ तड़ाका धाय॥
खबरि पायकै आल्हा ठाकुर हमरीबिपतिबिदरिहैंआय ११२
कुसुमा बोली फिरि ऊदन ते क्षत्री भोजन देइँ पठाय॥
ऊदन बोले तब कुसुमा ते यहनहिंउचितयहाँपरआय ११३
चोरी चोरा कछु ह्वैहै ना शाहंशाह कनौजीराय॥
भोर भ्वरहरे मुरगा बोलत फौजन खबरिदेउ पठवाय ११४
और न चाहैं कछु तुमते ये साँचे हाल दीन बतलाय॥
इतना सुनिकै कुसुमा बेटी महलनफेरिपहूँची आय ११५
सोचत सोचत राति पारभै प्रातःकाल गयो नगच्याय॥