पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३८

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संयोगिनिस्वयम्बर। दिल्ली केरे तब फाटक पर भारी भीर भई तहँ आय ।। रतीभान औ कान्ह कुवँर तहँ दोऊ रहिगे पैर जमाय ६७ दोऊ मारें दोउ ललकारें मानें कोऊ नहीं तहँ हारि ॥ वसरिन वसरिन याबिधि खेलें जैसे कुवाँ, भरै पनिहारि ६८ बैस - बराबरि है दोऊ के दोऊ बड़े लडैया ज्वान॥ पृथुइराज औ जयचंदराजा येऊ करें घोर घमसान ६E रायलंगरी हिरसिंह ठाकुर येऊ खूब करें तलवारि ।। अपने अपने सब मुर्चन में मानें केऊ न नेको हारि १०० मारो मारो भुजा उखारो सब दिशि यह रहे चिल्लाय ॥ भरि भरि खप्पर न. योगिनी मज्जनकरें भूत तहँ आय १०१ स्यार औ कुत्तनकी बनिआई कागन लागी कारि बजार।। चील्ह गीध ये सउदा लैके अपने घरका भये तयार १०२ रतीभान औ कान्ह कुचर तहँ दोऊ. बीर करें मैदान ।। हनि हनि भाला दोऊ मारें नहिं भयकर नेकहू ज्वान १०३ लाखन जूझे दिल्ली वाले लाखन कनउज के सरदार ॥ स्तीभानने त्यहि समया माँ हाथमलीन नांगितलवार १०४ सवैया॥ जूझिगये वहु शूर अपार वही तहँ शोणित की अतिधारा । गावत चामुंड नाचत योगिनि प्रेत बजावत हैं करतारा ।। जोर बह्यो रतिभानकी खड्ग सो घोर मच्यो तहँ पै हहकारा। जात चढ़े शवऊपर गृद्ध मनों ललिते जलखेलें निवारा १०५ को गति वरणे त्यहि समया के हमरे खून कही ना जाय। फिरि फिरि मार औ ललकारै यड्ड महराज कनौजीराय १०६