पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

लासनिका विवाह । ३८१ ताते जावो तुम बूंदी को हो पूर इमारो भोग १५२ बातें सुनिकै गजमोतिनि की मलखे धरा पीठिपर हाथ ॥ होय पियारी अस नारी जो तवहीं रहै धर्म की पाथ १५३ बड़ी पियारी निज नारी को मलखे बार बार समुझाय ॥ गये दुवारा फिरि माता घर चलिभेचरणकमलशिस्नाय१५४ घोड़ी कबुतरीपर चढ़ि बैठे डंका तुरत दीन बजवाय ॥ लेकै लश्कर मोहवे आये जहँ पर रह चंदेलेराय १५५ आय सिंहासन के लगभग में ठाढ़े भये शीश को नाय ।। आल्हा ऊदन की गाथा को मलखे गये तहाँ परगाय १५६ भयो बुलौवा हम ब्रह्माका आयसु काहमिलै महराज ।। परम दयालू चित तुम्हरो है स्वामीपूँछि करौं मैं काज १५७. गुरु पितु भ्राता अरु त्राता तुम हमरे सदा चंदेलेराय ॥ आज्ञापावों महराजा के तौऊदनका लवों छुड़ाय१५८ मुनिक बातें मलखाने की आयमु दीन रजापरिमाल - लिक ब्रह्माको जावो तुम दूनों वह हमारेबाल १५६ मायना के महराजा को मल्हना महल पहूँचे जाय॥ चिट्ठी पदिय तह आल्हा की मलखेदीनसकलसमुझाय१६०. विपदा सुनिक बघऊदन के मल्हना रोयदीन त्यहिबार ।। हाथ पकरिके फिरि ब्रह्माको बोली लेउ पूत तलवार १६१ क्षत्री हैकै समर सकावे जावै तुरत नरक के द्वार ।। परम पियारे सुतजावो तुम हमरो पूरहोय उपकार १६२ इतना सुनिकै ब्रह्मा ठाकुर अपनी लीन ढाल तलवार ।। विदा मांगिके पितु मातासों दोऊचलत भये सरदार १६३ सजिगा घोड़ा हरनागर जो ताप- ब्रह्मा भये सवार ॥