पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३८८

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लाखनिका विवाह । ३८७ म्वती जवाहिर दोउ पुत्रन को राजा तुरत लीन बुलवाय ॥ 'लिखी हकीकति जो गंगाधर तिनको तुरतदीन बतलाय ४३ गंगा कैलेउ तुम तम्बुन माँ तुम्हरी कैद देइँ छुड़वाय ।। सुनिक बात ये जयचंदकी दोऊ गंगा लीन उठाय ४४ तब छुड़वायो जयचंद राजा पहुँचे धाम आपने जाय ॥ सम्मत कीन्ह्यो फिरि गंगाधर मड़ये मूड़ लेब कटवाय ४५ अकसर लड़िकाको लै आवो जावो पूत जवाहिरलाल ॥ मुनिकै तुस्तै सो गमनत भा आयो जहाँ बैठ नरपाल ४६ कहि समुझायो सब राजा को दोऊ चरणन शीश नवाय ।। अकसर लड़िका को पठवावो सबियाँ शंका देउ भुलाय ४७ इतना सुनिक मलखे बोले राजन हुकुम देउ फरमाय ॥ पांच सात मिलि हमअब जैबे भौरी तुरत देव करवाय ४८ सुनिक बातें भलखाने की आयसु . दीन कनौजीराय ॥ बैठि पालकी में लखराना “देवी फूलमती को ध्याय ४६ आल्हा ऊदन मलखे ब्रह्मा देवा बनरस का सरदार ।। गंगा मामा लखराना का सोऊ बांधि लीन हथियार ५० सर्वया। ते सरदार सबै चलिक फिरि भीतर भौन के जाय सिधाये। सुन्दर आसन डारिवहाँ नृप आदर भाव किये अधिकाये ॥ पण्डित आयकै बैठि गयो गठिबन्धन हेतु सुता बुलवाये। सातसुहागिल आय तहाँ ललिते मन मोदन गीत सुनाये ५१ पहिली भाँवरिके परतै खन माल्हा ऊदन मलखे ब्रह्मा क्षत्री आये आध हजार ।। इनहुन बैंचि लीन तलवार ५२