पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/३९६

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गाँजरकीलड़ाई । ३६५ डगमग डगमग धरती हाली थर थर शेष गये थर्राय॥ देव सकाने बहु डरमाने पर्वत खोह छिपाने जाय ३४ को गति बरणे बघऊदन के आगे घोड़ नचावत जाय॥ धीरे धीरे छसिस दिन में गोरख पुरै पहूँचे आय ३५ पाँच कोस जब बिरिया रहिगइ डेरा तहाँ दीन डवाय।। ऊँची टिकुरिन तम्बू गड़िगे नीचे लगी बजारै आय ३६ कम्मर छोस्यों रजपूतन ने झीलम बखतर डरे उतार।। तंग बछेड़न के छोरेगे हाथिन उतरिपरे असवार ३७ झण्डा गड़िगे तम्बुन ढिग में ते सब आसमान फहराय। लागि कचहरी गै लाखनि के बीच म बैठ बनाफरराय ३८ कलम दवाइत को मँगवायो कागज तुरतै लीन उठाय॥ लिखी हकीकतिसब हिरासिंहको अब तुम खबरदार लैजाय ३६ बारह बरसै पूरी हइगई पैसादियो न कनउज जाय ।। अब चढ़ि आये उदयसिंह हैं साथै लिहे कनौजीराय ४० धरम छत्तिरिन के नाहीं ये धोखे डाँड़ दवा आय॥ लैके पैसा बरह बरस का ह्याँपै वेगि देउ चुकवाय ४१ नहिं भोर भ्वरहरे पहके फाटत सबियाँ बिरिया लेउ लुटाय॥ बाँधिकै मुशक मैं हिरसिंह की कनउज तुरत देव पहुँचाय ४२ लिखि परवाना दे धावन को ऊदन करन लाग विश्राम।। लै परवाना धावन चलिभो हिरसिंह बैठरहै निजधाम ४३ लै परवाना अटि धावन गो जायकै द्वारपाल को दीन । लै परवाना द्वारपाल गो हिरसिंहवाम हाथ लैलीन ४४ खोलि लिफाफासों कागजको आँकुइ आँकु बांचिसवलीन ।। उत्तरलिखिकै हिरसिंह राजा तुरतै दारपालको दीन १५