डगमग डगमग धरती हाली थर थर शेष गये थर्राय॥
देव सकाने बहु डरमाने पर्बत खोह छिपाने जाय ३४
को गति बरणै बघऊदन कै आगे घोड़ नचावत जाय॥
धीरे धीरे छत्तिस दिन में गोरख पुरै पहूँचे आय ३५
पाँच कोस जब बिरिया रहिगइ डेरा तहाँ दीन डरवाय॥
ऊँची टिकुरिन तम्बू गड़िगे नीचे लगीं बजारैं आय ३६
कम्मर छोर्यो रजपूतन ने झीलम बखतर डरे उतार॥
तंग बछेड़न के छोरेगे हाथिन उतरिपरे असवार ३७
झण्डा गड़िगे तम्बुन ढिग में ते सब आसमान फहरायँ॥
लागि कचहरी गै लाखनि कै बीच म बैठ बनाफरराय ३८
कलम दवाइत को मँगवायो कागज तुरतै लीन उठाय॥
लिखी हकीकतिसब हिरासिंहको अब तुम खबरदार ह्वैजाय ३९
बारह बरसै पूरी ह्वइगइँ पैसादिह्यो न कनउज जाय॥
अब चढ़ि आये उदयसिंह हैं साथै लिहे कनौजीराय ४०
धरम छत्तिरिन के नाहीं ये धोखे डाँड़ दबावैं आय॥
लैकै पैसा बरह बरस का ह्याँपै वेगि देउ चुकवाय ४१
नहिं भोर भ्वरहरे पहके फाटत सबियाँ बिरिया लेउँ लुटाय॥
बाँधिकै मुशकैं मैं हिरसिंह की कनउज तुरत देंव पहुँचाय ४२
लिखि परवाना दै धावन को ऊदन करन लाग बिश्राम॥
लै परवाना धावन चलिभो हिरसिंह बैठरहै निजधाम ४३
लै परवाना अटि धावन गो जायकै द्वारपाल को दीन॥
लै परवाना द्वारपाल गो हिरसिंहबाम हाथ लैलीन ४४
खोलि लिफाफासों कागजको आँकुइ आँकु बांचिसवलीन॥
उत्तरलिखिकै हिरसिंह राजा तुरतै द्वारपालको दीन ४५
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गाँजरकीलड़ाई। ३९५
