पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४०७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भारहखण्ड। ४.६ तुइ अभिनन्दन के धोखे ते भाये यहाँ बनाफरराय ।। पैसा लेवे की बातन को ऊदन चित्त देय विसराय १६४ कूच करावे अब डाँड़े ते नाहीं गई प्राण पर आय ॥ इतना मुनिक ऊदन जरिक तुरतै दीन्यो युद्ध मचाय १६५ सवैया ॥ रणशूरन की तलवार चलै अरु करन के उर होत दरारा। छप्प औ छप्प खपाखप शब्द बहे तहँ शोणित केर पनारा॥ हाथ औ पाँव भुजा अरु जाँघ परे तहँ सर्पन के अनुहारा । मारु औ काटु उखारुभुजा ललिते इनशब्दनको अधिकारा १६६ मारु चपेट लपेट करें औं दपेट ससेट करें सरदारा। शूल ओ सेल गदा भरु पटिश मारि रहे सब शूर उदारा ।। हारि न मानत ठानत रारि पुरारि मुरारि खरारि अधारा । ललितेसुरवन्दिअनन्दि सबै रणशूरन युद्धकियोत्यहिबारा १६७ भई लड़ाई बंगाले में नदिया वही रक्ककी धार ॥ मुण्डन केरे मुड़चौरा मे भी रुण्डन के लगे पहार १६८ हाथी घोड़न के गिन्ती वा पैदर जूझे पांच हजार ॥ घोड़ बेंडुला का चढ़वैया नाहर उदयसिंह सरदार १६६ ऍड़ लगायो रसवेंदुल के हाथी उपर पहूँचा जाय। गुर्ज चलायो बंगाली ने ऊदन लीन्ह्यो वार वचाय १७० ढाल कि औझड़ ऊदन म.री मुर्छा खाय गयो नरपाल ।। मुशकै बाँधी-तब राजा की नाहर देशराज के लाल १७१ रुपिया पैसा बंगाली के सब बकड़नमें लियो लदाय।। तुरते- चलिके बंगाले ते घेत्यो अटक बनाफर आय १७२