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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४०७

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आल्हखण्ड। ४०६

तुइ अभिनन्दन के धोखे ते आये यहाँ बनाफरराय॥
पैसा लेवे की बातन को ऊदन चित्त देय बिसराय १६४
कूच करावै अब डाँड़े ते नाहीं गई प्राण पर आय॥
इतना सुनिकै ऊदन जरिकै तुरतै दीन्ह्यो युद्ध मचाय १६५

सवैया॥


रणशूरन की तलवार चलै अरु कूरन के उर होत दरारा।
छप्प औ छप्प खपाखप शब्द बहे तहँ शोणित केर पनारा॥
हाथ औ पाँव भुजा अरु जाँघ परे तहँ सर्प्पन के अनुहारा।
मारु औ काटु उखारुभुजा ललिते इनशब्दनको अधिकारा १६६
मारु चपेट लपेट करैं औं दपेट ससेट करैं सरदारा।
शूल औ सेल गदा अरु पट्टिश मारि रहे सब शूर उदारा॥
हारि न मानत ठानत रारि पुरारि मुरारि खरारि अधारा।
ललितेसुरबन्दिअनन्दि सबै रणशूरन युद्धकियोत्यहिबारा १६७



भई लड़ाई बंगाले में नदिया वही रक्तकी धार॥
मुण्डन केरे मुड़चौरा भे औ रुण्डन के लगे पहार १६८
हाथी घोड़न कै गिन्ती वा पैदर जूझे पांच हजार॥
घोड़ बेंदुला का चढ़वैया नाहर उदयसिंह सरदार १६९
एँड़ लगायो रसबेंदुल के हाथी उपर पहूँचा जाय॥
गुर्ज चलायो बंगाली ने ऊदन लीन्ह्यो वार बचाय १७०
ढाल कि औझड़ ऊदन मारी मुर्च्छा खाय गयो नरपाल॥
मुशकै बाँधी तब राजा की नाहर देशराज के लाल १७१
रुपिया पैसा बंगाली के सब छकड़नमें लियो लदाय॥
तुरतै चलिकै बंगाले ते घेर्यो अटक बनाफर आय १७२