पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४१४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सिरसाकासमर। ४१३ ३ आशिर्वाद दे जल्दी सों जामें काम सिद्ध वैजाय १२ चढ़ा पिथौरा है सिरसा पर माता हुकुम देउ फरमाय ॥ विरमा बोली तब मलखे ते तुम्हरो वार न बाँका जाय १३ चरण लागिकै महतारी के मलखे कूच दीन करवाय ।। चौड़ा ताहर चन्दन वेटा तीनों परे तहाँ दिखलाय १४ चौंड़ा बोला मलखाने ते मानो कही बनाफरराय ।। किला गिराय देउ सिरसा का दीन्यो हुकुम पिथौराराय १५ इतना सुनिक मलखे बोले चौड़ा काह गये बौराय ।। अपने हाथे हम बनवावा हमहीं देवं किला गिराय १६ जो कछु ताकति हो पिरथीकी सो अब हमें देय दिखलाय ॥ असगति नाहीं है पिरथी के हमरो किला देय गिरवाय १७ सुनिकै बातें मलखाने की चौड़ा लागु दीन लगवाय ॥ झुके सिपाही दुहुँतरफा के मारें एक एक को धाय १८ पैदल पैदल के वरणी भै और असवार साथ असवार । मारे मारे तलवारिन के नदिया बही रक्त की धार १६ अपन परावा क्यहु सूझैना दूनों हाथ करें तलवार ॥ मुण्डन केरे मुड़चोरा मे औ रुण्डन के लाग पहार २० जैसे. भेड़िन भेड़हा पैठे जैसे अहिर बिडारै गाय ॥ तेसे मारै मलखे ठाकुर रणमा क्षत्रिन खेल खिलाय २१ बहुतक घायल भे खेतना बहुतक द्वैगे बिना परान ।। फिरि फिरि मार औ ललकारै नाहर समरधनी मलखान २२ चढ़ा चौड़िया इकदन्तापर गरुई हाँक देय ललकार ।। मोरि लालसा यह हालति है ठाकुर सिरसा के सरदार २३ मरे सिपाहिन का पैहो तुम ठाकुर मोरि तोरि तलवार ॥