पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४१५

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आल्हखण्ड। ४११ इतना सुनिक मलखे बोले चौड़ा भली कही यहि वार २४ इतना कहिकै मलखे ठाकुर चौड़ा पास पहूँचे जाय ।। साँग चलाई तब चौड़ा ने मलखे लीन्हो बार बचाय २५ ऍड़ लगाई फिरि घोड़ी के हौदा उपर पहूंचे जाय ॥ दाल कि औझड़ मलखे मारा चौड़ा गयो मुर्छा खाय २६ बांधिक मुशकै तब चौड़ाकी अपनी फौज पहूँचा आय ।। कड़ा छड़ा औबिछिया अगुग चौड़े दीन तहाँ पहिराय २७ अगे अगेला पिछे पछेला तिन वित्र चुरियाँ दीनडराय ।। जोशन पट्टी और बजुल्ला कानन करनफूल पहिराय २८ चैदीमाल नयन विच काजर पीछे चूनरि दीन उदाय ।। तुस्त घाँघरा को पहिराचा मलबे पलकीलीनमँगाय २६ रूप जनाना करि चौड़ा को पलकी उपर दीन बैठाय ।। फिरि बुलवावा हरकारा को ताको हाल दीन समुझाय ३० कह्यो जवानी पृथीराज ते चौड़े मुहबा लीन लुटाय ।। बेटी प्यारी परिमालिक की लैके कूच देउ करवाय ३१ चली पालकी फिरि चौंड़ा की लश्कर तुरत पहूँची प्राय ।। दौरति धावन महराजा ते सबियाँ हाल वतावा जाय ३२ बड़ी खुशाली भै पिरथी के फूले अंग न सके समाय ।। जल्दी आये फिरि पल की दिग देखन लागि पिथौराराय ३३ दीख जनाना तहँ चौड़ा को पिरथी गये बहुंत शर्माय ।। बधा चौंडिया जो बैठा था बंधन तुरत दीन खुलवाय ३४ कोधित द्वैकै महराजा फिरि आपै गये समर में आय ॥ औ ललकारा मलखाने को अवहीं किला देउ गिरवाय ३५ "इतना सुनिक मलखे बोले राजन साँच देय बतलाय ।।