पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४२१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

आल्हखण्ड । ४२० हाल पायकै सिरसागढ़का क्रोधित भयो पिथौराराय ६६ बाजे डंका इत पिरथी के वैसी सिरसा के महराज ॥ सूरज बंशी औ यदुवंशी तोमर वंश केर शिरताज ७ ये सब सजिसजि सिरसा गढ़में अपनी लीन ढाल तलवार ।। नीले काले सब्जे सुर्खे सब रंग घोड़ भये तय्यार ६८ अंगद पंगद मकुना भौरा सजिगे श्वेतवरण गजराज ।। हाड़ा बूंदी गहिलवारके तिनपर वैठि शूर शिरताजा सुमिरन करिके शिवशंकरका माते शीश नवावा जाय ॥ पीठि ठोंकि के विरमा माता आशिर्वाद दीन हर्षाय १०० चलिभा मलखे माताढिग ते रानी महल पहूंचा आय ॥ दीन दिलासा गजमोतिनिका ठाकुर चला खूब समुझाय १०१ बेटी बोली गजराजा की स्वामिन चेरी बोल बनाव।। पाएँ पछारी का डाखोना नाही हँसी देश औ गाँव १०२ होय हँसौवा ज्यहि दुनिया मा त्यहिका मरण नीकही आय॥ सुनी किहानी हम विश्न ते स्वामी साँचदीनवतलाय १०३ इतना सुनिक मलखे चुप्पै फौजन फेरि पहूंचे आय ।। बाजे डंका अहतका के मलखे कूच दीन करवाय १०४ सवैया॥ चर्खनमें सब तोप चढ़ाय औ फौज अपारलिये मलखाना। बाजत डंक निशंक तहाँ औ यथा घन सावनको घहराना।। विज्जु छटासों कटा करिख कह चमकत खड्ग तहाँ मर्दाना। मौहर बाजत हावकिये ललिते यह भाव न जात बखाना १०५ चढ़ा कबुतरी पर मलखाने मुर्चा सवै कीन तैयार॥