पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४२२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सिरसाकासमर। ४२१ पाग बैंजनी शिरपर बाँधे हाथ मलये दाल तलवार १०६ फिरिफिरि ध्यावशिवशंकरको गावै सुन्दर भजन बनाय॥ चील्ह ओ गीध उड़ें खुपस्निपर कुत्ता स्यार रहे चिल्लाय १०७ मरण काल के जो अशकुन है मलखे दीख तहाँपर आय ।। पै भयलायो मन अन्तर ना यह निरशंकवनाफरराय १०८ इकदिशि तोपनको लुटवावा इकदिशि धावा दीन कराय ॥ जैसे भेड़िन भिड़हा पहुंचे जैसे अहिर विडारे गाय १०६ तैसे मारे रजपूतन को यहु रएवाधु बनाफरराय ॥ ताहर चौड़ा ओ चन्दन का मुर्चा मलखे दीन हटाय ११० जौनै होदा मलखे ताक घोड़ी तहाँ देय पहुँचाय ।। जाय महावत का हनिडाएँ औ असवार देयँ गिराय १११ दहिने बाँये टापन मारै सम्मुख दाँतन लेय चवाय ।। मलखे ठाकुर के मारुनमा बहुदल परा तहाँभहराय ११२ जहँना हाथी पृथीराज का मलखे तहाँ पहूंचे आय ।। पतरी लकड़िन खन्दक पाटे ताके पार पिथोराराय ११३ खाली खन्दक एक बीच में ताको दीख बनाफरराय ॥. - गईन ठोंकी तहँ घोड़ी की दूनों ऍड़ा दीन लगाय ११४ चूकि कबुतरी धरती जाना खन्दक परी तड़ाकाजाय। मलखे घोड़ी दोउ खन्दकमा भालन उपर गिरे भहराय११५ बलछी भालनकी नोकन सों घायल भये बनाफरराय ।। बड़ा शोचभा तहँ घोड़ी का रोवें वाखार पछिताय ११६ वोड़ी तड़पी-फिरि खन्दकते मलखे सहित पारगै आय ।। पदुम फाटिगा तहँ तरवा का औं मरिगये बनाफरराय ११७ गा हरिकारा तब सिरसामा विरमै खबरि बतावा जाय ॥ ॥