पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४२४

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सिरसाकासमरः। ४२३ नाक चपावें ते. अँगुठा ते ऊपरश्वासचढ़ावत जाय? ३० तेसे करिक गजमोतिन ह्याँ. ऊपर हवा दीन पहुँचाय । जब फुफकारयो पति शव लेकै हाहाकार अग्निगै आय १३१ भम्मम्मम्मम् चन्दन लकड़ा, सुलगनलागि तहाँपर भाय । हाय पियारे बघऊदन के मारे गये बनाफरराय १३३ भाय पियारो ऊदन होते दिल्ली शहर देत फुकवाय ॥ हाय विधाता यह गति कीन्ही न्यारे भये बनाफरराय १३३ कौन दुसरिया जग दादा को इन्दल पूत बड़ा बरियार ।। मरत न देखा यहि समया मा देवर उदयासिंह सरदार १३४ जो हम जानति यह गतिहाई तुमका लेति तुरत बुलवाय ( दगा न करते दिल्ली वाले तोकसमरतिप्राणपतिप्राय १३५ कड़के धड़के फड़कै छाती ऐसो देखि शूर सरदार । यह मनाऊं औ ध्याऊं नित स्वामी दीनबन्धुक र १३६ जहँ जहँ जन्में ये स्वामी मम तहँ तहँ होय मोरि भार ।। अग्नि प्रज्वलित त्यहिसमयाभै लागे जरन सबै शृंगार १३७ गमकै टोलक त्यहि समया माँ धमकै थाप नगारे भाय चम्चम् चमकै गजमोतिनितहँ. दमकैजरतहेमअधिकाय १३८ माता बिरमा मोती मूंगा सुवरण बस्त्रदीन चिरकाय । रही न आशा धन लेबे की मलखेशोचतहाँअधिकाय१३६ ऐस प्रतापी नित होवें ना ज्ञानी पुरुप विचारें भाय । दानी ध्यानी अभिमानी सब शोचें सीयराम शिरनाय १४० घरी नवीती ह्याँ महरानी पहुँची स्वर्गलोक में जाय ।। तहँहूँ सोचे सुख मल्हना को जाविधिदीनरहैअधिकाय१४१ सवियाँ रैयति मलखाने की दर दरं रोय रही अधिकाय ।।