नाक चपावैं ते अँगुठा ते ऊपरश्वासचढ़ावत जायँ १३०
तैसे करिकै गजमोतिन ह्याँ ऊपर हवा दीन पहुँचाय॥
जब फुफकार्यो पति शव लैकै हाहाकार अग्निगै आय १३१
भम्भम्भम्भम् चन्दन लकड़ा, सुलगनलागि तहाँपर भाय॥
हाय पियारे बघऊदन के मारे गये बनाफरराय १३२
भाय पियारो ऊदन होते दिल्ली शहर देत फुँकवाय॥
हाय बिधाता यह गति कीन्ही न्यारे भये बनाफरराय १३३
कौन दुसरिया जग दादा को इन्दल पूत बड़ा बरियार॥
मरत न देखा यहि समया मा देवर उदयासिंह सरदार १३४
जो हम जानति यह गतिहोई तुमका लेति तुरत बुलवाय॥
दगा न करते दिल्ली वाले तौकसमरतिप्राणपतिआय १३५
कड़कै धड़कै फड़कै छाती ऐसो देखि शूर सरदार॥
यहै मनाऊं औ ध्याऊं नित स्वामी दीनबन्धुकर्त्तार १३६
जहँ जहँ जन्मै ये स्वामी मम तहँ तहँ होयँ मोरि भर्त्तार॥
अग्नि प्रज्वलित त्यहिसमयाभै लागे जरन सबै शृंगार १३७
गमकै ढोलक त्यहि समया माँ धमकै थाप नगारे भाय॥
चम्चम् चमकै गजमोतिनितहँ दमकैजरतहेमअधिकाय १३८
माता बिरमा मोती मूंगा सुवरण बस्त्रदीन छिरकाय॥
रही न आशा धन लेबे की मलखेशोचतहाँअधिकाय १३९
ऐस प्रतापी नित होवैं ना ज्ञानी पुरुष बिचारैं भाय॥
दानी ध्यानी अभिमानी सब शोचैं सीयराम शिरनाय १४०
घरी न वीती ह्याँ महरानी पहुँची स्वर्गलोक में जाय॥
तहँहूँ सोचै सुख मल्हना को जाबिधिदीनरहैअधिकाय१४१
सबियाँ रैयति मलखाने की दर दर रोय रही अधिकाय॥
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सिरसाकासमर। ४२३
