कलियुग बाबा की रजधानी माता तुही लगावै पार ४
जप तप भाग्यो मेरि देही ते अब मैं भयों बहुत सुकुमार॥
ताते नैया डगमग होवै बेड़ा कौन लगावै पार ५
तुही खेवैया शारद मैया माता खेय लगावै पार॥
नाहिं तो बूड़ौं मँझधारा में माता होवै हँसी तुम्हार ६
छूटि सुमिरनी गै शारद कै शाका सुनो शूरमन क्यार॥
करिया आई अब मोहबे का जो जम्वैका राजकुमार ७
अथ कथाप्रसङ्ग॥
एक समइया की बातैं हैं यारो सुनिल्यो कान लगाय।।
परब दशहरा की बुड़की रहै गंगा न्हान सबै कोउ जाय १
बड़ा महातम श्रीगंगा को गायो वालमीकि महराज॥
ब्यास बनायो महभारत जो तामें कह्यो जगत के काज २
सो सब जाने भाड़ोवाला यडु जम्बै का राजकुमार॥
हाथ जोरिकै फिरि बोलतभा ददुवा सुनिल्यो बचन हमार ३
भारी मेला श्री गंगा को ददुवा जाजमऊ के घाट॥
पुरके बाहर हम देखा है जावैं राव रङ्क सब बाट ४
हुकुम जो पावैं हम ददुवा को तो गंगा को अवैं अन्हाय॥
पाप नशावैं सब देही के गंगा चरण शरण में जाय ५
सुनिकै बातैं ये करिया की जम्बै गोद लीन बैठाय॥
चूम्यो चाट्यो गले लगायो बोल्यो बचन तुरत मुसुकाय ६
बारह बरसनका अरसा भो पैसा दीन न कनउज केर॥
नायव मन्त्री चन्देले के तुमको लेयँ वहाँ जो हेर ७
बाँधिकै मुशकै म्वरे बचुवा त्वहिं तुरतै जेहल देयँ पहुँचाय॥
पैसा देवों तो बचिजावो नाहिं तो जाय प्राणपर आय ८