पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४३

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२ माल्हखण्ड |३८ कलियुग बाबा की रजधानी माता तुही लगावै पार ४ जप तप भाग्यो मेरि देही ते अव में भयों बहुत सुकुमार ।। ताते नैया डगमग होवे बेड़ा कौन लगावे पार ५ तुही खेवैया शारद मैया माता खेय लगावै पार ।। नाहि तो वूड़ों मँझधारा में माता होवे हँसी तुम्हार ६ छूटि सुमिरनी गै शारद के शाका सुनो शूरमन क्यार ।। करिया आई अब मोहबे का जो जम्वेका राजकुमार ७ अथ कथामसा॥ एक समइया की बातें हैं यारो सुनिल्यो कान लगाय।। परव दशहरा की बुड़की रहै गंगा न्हान सवै कोउ जाय ! बड़ा महातम श्रीगंगा को गायो वालमीकि महराज ।। व्यास बनायो महभारत जो तामें कह्यो जगत के काज २ सो सब जाने भाडोवाला यड्ड जम्ने का राजकुमार ।। हाथ जोरिक फिरि वोलतभा ददुवा सुनिल्यो वचन हमार ३ भारी मेला श्री गंगा को ददुवा जाजमऊ के घाट । पुरके बाहर हम देखा है जावें राव रक सब बाट ४ हुकुम जो पाई हम ददुवा को तो गंगा को अ अन्हाय ॥ पाप नशा सब देही के गंगा चरण शरण में जाय ५ सुनिक बातें ये करिया की जम्बै गोद लीन बैठाय ।। चम्यो चाव्यो गले लगायो बोल्यो वचन तुस्त मुसुकाय ६ बारह घरसनका अरसा भो पैसा दीन न कनउज केर ।। नायव मन्त्री चन्देले के तुमको लेय वहाँ जो हेर ७ बाँधिक मुशकैम्बरे बचुवा त्वहिं तुरते जेहल देय पहुँचाय ।। पैसा देवों तो चिजावो नाहितोजाय प्रापपर आय