पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४३१

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आल्हखण्डः। ४३. होश उड़ाने दोउ क्षत्रिन के दोऊ ढगे हाल बिहाल । कह्यो बरदिया ते धीरज धरि बेटा देशराज के लाल ४५ का खा गा पा ङ ङा आदिक हमहूँ पढ़ा एकही साथ ।। ॥ हाय ! पियारे गुरु भाई को कैसे निधन कीन जगनाथ ४६ चला बरदिया तब ऊदन ते साँची सुनो गुरू महराज। ।। जो महरानी गजमोतिनिथी सत्ती भई धर्म के काज ४७ परम पियारे वधऊदन का लै लै वार चार सो नाम ।। धरिकै जंघापर प्रीतम शिर पहुँची तुरत विष्णुके धाम ४८ सुनी बरदिया की बात ये वोला देशराज का लाल ।। सरा दिखावो मलखाने का कहँ पर जरी सती सो वाल ४६ सुनिक बातें वघऊदन की तुरतै साथ भयो तय्यार ॥ बना चबुतरा तहँ सत्ती का देखत भये सबै सरदार ५० बहु रन वोले त्यहि समयामाँ साफै शब्द परा सो कान ॥ आज साँकरा परिमालिक का जावो तहाँ सबै तुम ज्वान ५१ इतना सुनिकै ऊदन वोले साफै साफ देय बतलाय ।। जियत मोहोवे हम जावेंना कौवा मरे हाड़ ले जायँ ५२ नाता टूटो अब मोहबे का जादिन मरे बीर मलखान ।। को अस ठाकुर अब दुनियामा दादा मलखे के अनुमान ५३ इतना कहिक ऊदन देवा दोऊ छांड़ि दीन डिंडकार ।। फिरि रन बोले त्यहि समयामा ऊदन जीवेका धिक्कार ५४ आजु साँकरा है मल्हना पर यहु दिन परी न बारम्बार ॥ ताते जावो तुम मोहवे को ठाकुर उदयसिंह सरदार ५५ इतना सुनिकै सव योगिनने सुमिरा हृदय भवानीनाथ ।। बड़ा मोह करि तेहि समया मा चौर फेरि नवायो माथ ५६