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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४३१

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आल्हखण्ड। ४३०

होश उड़ाने दोउ क्षत्रिन के दोऊ ह्वैगे हाल बिहाल॥
कह्यो बरदिया ते धीरज धरि बेटा देशराज के लाल ४५
का खा गा घा ङ ङा आदिक हमहूँ पढ़ा एकही साथ॥
हाय! पियारे गुरु भाई को कैसे निधन कीन जगनाथ ४६
ब्वला बरदिया तब ऊदन ते साॅची सुनो गुरू महराज॥
जो महरानी गजमोतिनि थी सत्ती भई धर्म के काज ४७
परम पियारे बधऊदन का लै लै बार बार सो नाम॥
धरिकै जंघापर प्रीतम शिर पहुँची तुरत विष्णुके धाम ४८
सुनी बरदिया की बातैं ये बोला देशराज का लाल॥
सरा दिखावो मलखाने का कहँ पर जरी सती सो बाल ४९
सुनिकै बातैं बघऊदन की तुरतै साथ भयो तय्यार॥
बना चबुतरा तहँ सत्ती का देखत भये सबै सरदार ५०
बहु रन बोले त्यहि समयामाँ साफै शब्द परा सो कान॥
आज साँकरा परिमालिक का जावो तहाँ सबै तुम ज्वान ५१
इतना सुनिकै ऊदन बोले साफै साफ देयँ बतलाय॥
जियत्त मोहोबे हम जावैं ना कौवा मरे हाड़ लै जायँ ५२
नाता टूटो अब मोहबे का जादिन मरे बीर मलखान॥
को अस ठाकुर अब दुनियामा दादा मलखे के अनुमान ५३
इतना कहिकै ऊदन देबा दोऊ छांड़ि दीन डिंडकार॥
फिरि रन बोले त्यहि समयामा ऊदन जीवेका धिक्कार ५४
आजु साँकरा है मल्हना पर यहु दिन परी न बारम्बार॥
ताते जावो तुम मोहबे को ठाकुर उदयसिंह सरदार ५५
इतना सुनिकै सब योगिनने सुमिरा हृदय भवानीनाथ॥
बड़ा मोह करि तेहि समया मा चौरै फेरि नवायो माथ ५६