पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४३२

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कीरतिसागरकामेदान । ४३१ चारो योगी चलि तहना ते मोहबे फेरि पहूँचे आय।। मोहबा केरे फिरि फाटक परं योगिनअलखजगायोजाय ५७ बजी बाँसुरी तहँ ऊदन की झड़ी मैनपुरी चौहान ।। बाजै डमरू भल लाखनि का । तोड़ें गजल पर्ज पर तान ५८ को गति चरणै तहँ सय्यद के सो इकतारा रहा बजाय ।। ऊदन बोले दरखानी ते फाटक तुरत देउ खुलवाय ५६ सुनी हकीकति हम काशीमाँ मोहवा बौं रजा परिमाल ॥ पारस पत्थर इन के घरमा इनसम नहीं और महिपाल भिक्षा माँगब हम ड्योढ़ी माँ साँचै साँच दीन बतलाय ।। हैं हम योगी बङ्गाले के आयन द्रव्य हेतु है भाय ६१ तुम्हें मुनासिब अब याही है फाटक तुरत देउ खुलवाय ॥ सुनिकै बातें बैरागिन की बोला तुरत बचन शिस्नाय ६२ खुलि है फाटक बैरागी ना तुम ते साँच दीन बतलाय ॥ आफति आई परिमालिक पर गाँसा नगर पिथौरा आय ६३ वन्धन छूटे ना गौवन के ना कउ त्रिया सेजपर जाय ।। आज मोहोबा पर विपदा है घर घर रही उदासी छाय ६४ झुलै हिंडोला ह्याँ कोऊ ना ना कउ गावै मेघ मलार ।। आज मोहोबा लङ्का द्वैगा • शङ्का घूमि रही सब द्वार ६५ बङ्का ठाकुर सिरसावाला जब ते मरा वीर मलखान ।। आल्हा ऊदन गे कनउज को तबते छूटिगई सब शान ६६ इतना कहिकै दरवानिन ने योगिन पुरै दीन पहुँचाय ।। ता ता थेई ता ता थेई ऊदन ठाकुर दीन मचाय ६७ धुरपद सरंगीत तिल्लाना गावै खूब कनउजीराय ।। बाजे खझड़ी भल देवा के सय्यददशा बरणिनाजाय ६८