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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४३४

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कीरतिसागरकामैदान। ४३३

इतना सुनिकै ऊदन बोले दोऊ हाथ जोरि शिरनाय॥
हम नहिं लरिका पृथीराज के माता काह गई बौराय ८१
हमतो योगी बंगाले के मोहबा शहर मँझावा आय॥
कुटी हमारी है गोरखपुर जावैं हरद्वार को माय ८२
मोहिं बखेड़ा ते मतलब ना भिक्षा आप देयँ मँगवाय॥
पारस पत्थर तुम्हरे घरमा लोहा छुवत स्वान ह्वैजाय ८३
सुनी बड़ाई हम कनउज मा राजा जयचँद के दरबार॥
साल दुसाला मोहनमाला दीन्ह्यो उदयसिंह सरदार ८४
आला राजा कनउज वाला गुदरी तुरत दीन बनवाय॥
मुँदरी दीन्ह्यो इन्दल ठाकुर लाखनि कड़ादीन पहिराय ८५
जो कछु पावैं हम महलनते लैकै कूच देयँ करवाय॥
भजनानन्दी सब योगी हैं कहुकछुदेवैं भजनमुनाय ८६
शोक छाँड़िकै आनँद होवो करिहैं कुशल जानकीमाय॥
एक पिथौरा के गिनती ना लाखन चढ़ैं पिथौराआय ८७
पुण्य तुम्हारी ते मिटि जैहैं माता साँच देयँ बतलाय॥
काहे रोवो तुम महलन मा माता बार बार घबड़ाय ८८
सुनिकै बातैं ये योगिन की मल्हना छाँड़िदीन डिंडकार॥
काह बतावैं हम योगिन ते नाहिंन उदयसिंह सरदार ८९
कुँवाँ बिवाहन उदयसिंह गे तब मैं पैर दीन लटकाय॥
प्राणनेग तहँ हमका दीन्ह्यो आल्हा केर लहुरवाभाय ९०
बात ब्यगरिगै महराजा ते आल्हा ऊदन गये रिसाय॥
मरिगा ठाकुर सिरसावाला बिपदा गई मोहोबे आय ९१
खान पान अब कछु सूझैना बूझै नहीं कछू दिनरात॥
को भब जूझै पृथीराज ते सूझै नहीं मनै यह बात ९२

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