इतना सुनिकै पृथीराज ने चौंड़ा धांधू लीन बुलाय॥
भल समुझावा तिन दोउनका यहु महराज पिथौराराय ११७
दोऊ चढ़िकै तहँ हाथिन मा तहँते कूच दीन करवाय॥
जायकै पहुँचे फिरि झावर मा जहँपर योगिनकासमुदाय ११८
चौड़ा बोला तहँ ऊदन ते योगी हाल देउ बतलाय॥
कहाँते आयो औ कहँ जैहौ काहे डेरा दीन गड़ाय ११९
ऊदन बोले तब चौंड़ा ते ठाकुर हाथी के असवार॥
हम तो आये बंगाले ते जावैं हरद्वार यहिबार १२०
पै हम रहिवे ह्याँ पंद्रादिन तुमते साँच दीन बतलाय॥
मल्हनारानी इक मोहबे मा ताकी परब देब करवाय १२१
है खलभल्ला औ हल्लाअति की चढ़ि अवा पिथौराराय॥
कीन प्रतिज्ञा हम मोहबे मा तुम्हरी परब देव करवाय १२२
साँची करिबे हम बानी का ताते टिकब यहाँ पर भाय॥
कहाँ के ठाकुर तुम दोऊ हौ हमते साफ देउ बतलाय १२३
फौज देखिकै बैरागिन के दोऊ लागि मनै पछिताय॥
कोन हटाई बैरागिन का सम्मुख समरभूमिमें जाय १२४
जौन बनावा महराजा ने योगिन स्वई दीन बतलाय॥
कैसे टरि हैं ये भावर ते यह नहिं चित्तठीकठहराय १२५
चौड़ा घाँधू फिरि बोलत भे योगिन बार बार समुझाय॥
करैं वखेड़ा कहुँ योगी ना ताते कूच देउ करवाय १२६
कह्यो पिथौरा यह हमते है योगिन जाय देउ समुझाय॥
कूच करावैं उइ झावर ते नाहक रारि मचावैं आय १२७
लड़ना मरना रजपूतन का युग युग धर्म यहै है भाय॥
युद्ध न चहिये बैरागिन को ताते कूच देउ करवाय १२८
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आल्हखण्ड। ४३६
