पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४३७

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आल्हखण्ड। १३६ इतना सुनिकै पृथीराज ने चौड़ा धांधू लीन बुलाय॥ भल समुझावा तिन दोउनका यहु महराज पिथोराराय ११७ दोऊ चढिके तहँ हाथिन मा तहते कूच दीन करवाय॥ जायकै पहुँचे फिरि झावर मा जहँपर योगिनकासमुदाय११८ चौड़ा बोला तहँ ऊदन ते योगी हाल देउ वतलाय ।। कहाँते आयो ो कह जैही काहे डेरा दीन गड़ाय ११६ ऊदन बोले तव चौड़ा ते ठाकुर हाथी के असवार ॥ हम तो आये बंगाले ते जावें हरदार यहिबार १२० पै हम रहिवे ह्याँ पंद्रादिन तुमते साँच दीन बतलाय॥ मल्हनारानी इक मोहवे मा ताकी परब देव करवाय १२१ है खलभल्ला औ हल्लाप्रति की चढ़ि अवा पिथौराराय ।। कीन प्रतिज्ञा हम मोहबे मा तुम्हरी परव देव करवाय १२२ साँची करिखे हम वानी का ताते टिकव यहाँ पर भाय ।। कहाँ के ठाकुर तुम दोऊ हो हमते साफ देउ बतलाय १२३ फौज देखिकै वैरागिन के दोऊ लागि मनै पचिताय ।। कोन हटाई वैरागिन का सम्मुख समरभूमिमें जाय १२४ जौन बनावा महराजा ने योगिन स्वई दीन बनलाय ॥ कैसे टरि हैं ये भावर ते यह नहिं चित्तठीकठहराय १२५ चौड़ा घाँधू फिरि बोलत मे योगिन बार बार समुझाय ॥ करें वखेड़ा कहुँ योगी ना ताते कूच देउ करवाय १२६ कह्यो पिथौरा यह हमते है योगिन जाय देउ समुझाय।। कूच करावें उड़ झावर ते नाहक रारि मचा आय १२७ लड़ना मरना रजपूतन का युग युग धर्म यह है भाय॥ युद्ध न चहिये वैरागिन को ताते कूच दे करवाय १२८