पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४४२

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कीरतिसागरकामैदान । ४४१ चारह रानी परिमालिक की सोऊ भई बेगि तय्यार॥ जहर बुझाई छूरी लैके नलकी पलकी भईं सवार १७७ मल्हना बोली चन्द्रावलि ते बेटी करो वचन परमान ।। डोला तुम्हरो गहै पिथौरा तौ देदियो आपनोपान १७८ यै तुम जायो नहिं दिल्ली को पेट म माश्यो काढ़ि कटार॥ इतना कहिकै रानी मल्हना आपो होत भई असवार १७६ आगे पीछे फौजै कैकै बीच म डोला लीन कराय ।। मनियादेवनको सुमिरन करि रंजित कूचदीन करवाय १८० छींक तडाका भै सम्मुख मा मल्हना रोय उठी ततकाल । तुम नहिं जावो अब सागरको बेटा करो बचन प्रतिपाल १८१ अशकुन पहिलेते द्वैगा है कैसी करी तहाँ करतार ।। लेउ चलेया मैं रंजित कै बेटा लौटिचलौ यहिबार १८२ इतना सुनिक रंजित बोले माता करो बचन विश्वाश ॥ शकुन औ अशकुनकोमा ना ना हमकरैं जीवकी आश १८३ कीरतिसागर मदनताल पर तुम्हरी पर्व छह करवाय।। जो मरिजै हैं हम सागर में कीरति रही जगतमेंछाय १८४ पाउँ पिछारी को धखिना चहुँतन धजीधजी उडिजाय । स्यावसि स्यावसि अभई बोले मल्हनाचुप्पसाधिरहिजाय१८५ चलिभा लश्कर फिरि आगेका फाटक उपर पहूँचा जाय ।। जहँना तम्बू पृषीराज का माहिल तहाँ पहूँचाधाय १८६ खबरि सुनाई सब पिरथी को माहिल बार बार समुझाय ।। हुकुम पायकै तहँ पिरथी का चौड़ा कूच दीन करवाय १८७ खेत छूटिगा दिननायक सों झंडा गड़ा निशाको आय ।। तारागण सब चमकन लागे सन्तनधुनी दीनपरचाय १८८