बारह रानी परिमालिक की सोऊ भईं बेगि तय्यार॥
जहर बुझाई छूरी लैकै नलकी पलकी भईं सवार १७७
मल्हना बोली चन्द्रावलि ते बेटी करो बचन परमान॥
डोला तुम्हरो गहै पिथौरा तौ दैदिह्यो आपनोप्रान १७८
यै तुम जायो नहिं दिल्ली को पेट म मार्यो काढ़ि कटार॥
इतना कहिकै रानी मल्हना आपो होत भई असवार १७९
आगे पीछे फौजै कैकै बीच म डोला लीन कराय॥
मनियादेवनको सुमिरन करि रंजित कूचदीन करवाय १८०
छींक तडाका भै सम्मुख मा मल्हना रोय उठी ततकाल॥
तुम नहिं जावो अब सागरको बेटा करो बचन प्रतिपाल १८१
अशकुन पहिलेते ह्वैगा है कैसी करी तहाँ करतार॥
लेउँ बलैया मैं रंजित कै बेटा लौटिचलौ यहिबार १८२
इतना सुनिकै रंजित बोले माता करो बचन विश्वाश॥
शकुन औ अशकुनकोमानैंना ना हमकरैं जीवकी आश १८३
कीरतिसागर मदनताल पर तुम्हरी पर्व द्दहैं करवाय॥
जो मरिजै हैं हम सागर में कीरति रही जगतमेंछाय १८४
पाउँ पिछारी को धखिना चहुतन धजीधजी उड़िजाय॥
स्याबसि स्याबसि अभई बोले मल्हनाचुप्पसाधिरहिजाय१८५
चलिभा लश्कर फिरि आगेका फाटक उपर पहूँचा जाय॥
जहँना तम्बू पृषीराज का माहिल तहाँ पहूँचाधाय १८६
खबरि सुनाई सब पिरथी को माहिल बार बार समुझाय॥
हुकुम पायकै तहँ पिरथी का चौंड़ा कूच दीन करवाय १८७
खेत छूटिगा दिननायक सों झंडा गड़ा निशाको आय॥
तारागण सब चमकन लागे सन्तनधुनी दीनपरचाय १८८
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कीरतिसागरकामैदान। ४४१
