पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४५७

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३२ आल्ह खण्ड । ४५६ ढाले कच्छा छूरी मच्छा वारन मानो नदी सिवार १४८ न.. योगिनी खप्पर लीन्हे ठोके ताल भूत वैताल ।। लूटि मचाई भल गृद्धन है फौजें कुत्तनकी विकराल १४६ भल बनिआई तहँ चील्हन की कागन लागी कारि बजार ।। लैले सौदा चले शृगालौ आंतनमाल कण्ठमें धार १५० लाखनि पिरथी के मुर्चा मा लागी चलन खूब तलवार॥ हौदन हौदन के ऊपर मा घूमै बेदुल का असवार १५१ जूझक कंकण सवालाख का सो हाथे मा करै वहार ।। त्यहिकादीख्यो जव पिरथी पति राजा दिल्ली के सरदार १५२ तव पहिचान्यो बघऊदन का निश्चय ठीक लीन उहराय ।। लाखनिराना है सम्मुख मा. ज्यहिमम हाथीदीनहाय १५३ यह शोचिकै पृथीराज ने दीन्ह्यो मारु बन्द करवाय ॥ बढ़िगे डोला महरानिन के सागर उपर पहूँचे जाय १५४ दक्षिण दिशि मा परा पिथौरा उत्तर उदयसिंह सरदार। लाखनि बोले ह्याँ मल्हना ते रानी करो अपनत्यवहार १५५ इतना सुनिक तहँ चन्दावलि सीदिन उपर बैठिगे जाय ।। पात मँगाये तहँ पुरइन के सुन्दरि दोनी लीनबनाय १५६ छोड़ि दोनइया दी सागर में माहिल दीख तमाशा आय ॥ लिल्ली घोड़ी का चढ़वैया पिरथी पास पहुँचा जाय १५७ . खबरि बताई सब सागर की माहिल बार वार समुझाय ॥ हाल पायके पृथीराज ने चौंडाकशीदीनपठाय १५८ छड़ी. दुनैया जब चन्द्रावलि चौड़ा हाथी दीन बढ़ाय ।। रोयकै वोली तब चन्द्रावलि पवनीकिहिसिखोंटियहुआय१५६ बिना दुलाके चढ़वैया को अब दुनिया लेय बचाया