ढालै कच्छा छूरी मच्छा वारन मानो नदी सिवार १४८
नचैं योगिनी खप्पर लीन्हे ठोकैं ताल भूत बैताल॥
लूटि मचाई भल गृद्धन है फौजैं कुत्तन की विकराल १४९
भल बनिआई तहँ चील्हन की कागन लागी कारि बजार॥
लैलै सौदा चले शृगालौ आंतनमाल कण्ठ में धार १५०
लाखनि पिरथी के मुर्चा मा लागी चलन खूब तलवार॥
हौदन हौदन के ऊपर मा घूमै बेंदुल का असवार १५१
जूझक कंकण सवालाख का सो हाथे मा करै बहार॥
त्यहिका दीख्यो जब पिरथीपति राजा दिल्ली के सरदार १५२
तब पहिंचान्यो बघऊदन का निश्चय ठीक लीन ठहराय॥
लाखनिराना है सम्मुख मा ज्यहिमम हाथीदीनहटाय १५३
यहै शोचिकै पृथीराज ने दीन्ह्यो मारु बन्द करवाय॥
बढ़िगे डोला महरानिन के सागर उपर पहूँचे जाय १५४
दक्षिण दिशि मा परा पिथौरा उत्तर उदयसिंह सरदार॥
लाखनि बोले ह्याँ मल्हना ते रानी करो अपन त्यवहार १५५
इतना सुनिकै तहँ चन्द्रावलि सीढ़िन उपर बैठिगे जाय॥
पात मँगाये तहँ पुरइन के सुन्दरि दोनी लीनबनाय १५६
छाँड़ि दोनइया दी सागर में माहिल दीख तमाशा आय॥
लिल्ली घोड़ी का चढ़वैया पिरथी पास पहुँचा जाय १५७
खबरि बताई सब सागर की माहिल बार बार समुझाय॥
हाल पायकै पृथीराज ने चौंड़ा बकशी दीन पठाय १५८
छँड़ी दुनैया जब चन्द्रावलि चौंड़ा हाथी दीन बढ़ाय॥
रोय कै बोली तब चन्द्रावलि पबनी किहि सि खोंटिय हुआय १५९
बिना बेंदुलाके चढ़वैया को अब दुनिया लेय बचाय॥
पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४५७
दिखावट
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
३२
आल्हखण्ड। ४५६
