पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४५८

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कीरतिसागरकामैदान। ४५७ ३३ जों कहूँ दुनिया चौंड़ा लैगा हमरी पर्व खोंटि हैजाय १६० सुनिक बातें चन्द्रावलि की बोला तुरत कनौजीराय ॥ लेउ दोनइया उदयसिंह तुम मानो कही बनाफरराय १६१ इतना सुनिक उदयसिंह ने अपनो दीन्ह्यो घोड़ बढ़ाय ।। तबै चौंड़िया ने ललकारा योगी खबरदार है जाय १६२ पैही दोनी ना सागर में आपत प्राण गवाँये आय ।। इतना कहिकै चौड़ा बकशी भालामारयो तुरतचलाय १६३ वार बचाई तहँ भाला की तुरतै दोनी लीन उठाय ॥ लैक दोनी दी बहिनी को वहिनी बार बार बलिजाय १६४ सूजी खोसे अब क्यहि के हम नहिं घर आज लहुस्वाभाय । इतना सुनिकै मल्हना बोली चन्द्रावलिकोवचनबुझाय१६५ खोंसो सूजी तुम योगिन के जिन अब पवनी दीनकराय॥ इतना सुनिकै चन्द्रावलि फिरि पहुँचीउदयसिंहदिगजाय १६६ कीन इशारा तव लाखनि का यहु रणवाघु बनाफरराय॥ लाखनि बोले तव ऊदन ते हमरो मूड़ कटायो आय १६७ माल खजाना कछु लाये ना दे३ कौन नेगु ह्याँ आय ॥ तहिले पहुँची चन्द्रावलि तहँ सूजी धरी कानपर जाय १६८ वाइस हाथी तीनि पालकी दीन्ह्यो नेगु कनौजीराय ।। सूजी खाँसी जव ऊदन के जूझकोकंकणदीनगहाय१६६ देखिकै कंकण उदयसिंह का निश्चय मनै लीन ठहराय ।। साँचो योगी यहु ऊदन है मातैकहावचनसमुझाय १७० सुनिक बातें चन्द्रावलि की ऊदन नाम दीन बतलाय ।। बड़ी खुशाली भै सागर में सबकोउमिलींतहाँपरआय१७१