जों कहूँ दुनिया चौंड़ा लैगा हमरी पर्व खोंटि ह्वैजाय १६०
सुनिकै बातैं चन्द्रावलि की बोला तुरत कनौजीराय॥
लेउ दोनइया उदयसिंह तुम मानो कही बनाफरराय १६१
इतना सुनिकै उदयसिंह ने अपनो दीन्ह्यो घोड़ बढ़ाय॥
तबै चौंड़िया ने ललकारा योगी खबरदार ह्वै जाय १६२
पैहौ दोनी ना सागर में आपत प्राण गवाँये आय॥
इतना कहिकै चौंड़ा बकशी भालामार्यो तुरतचलाय १६३
वार बचाई तहँ भाला की तुरतै दोनी लीन उठाय॥
लैकै दोनी दी बहिनी को वहिनी बार बार बलिजाय १६४
सूजी खोसैं अब क्यहि के हम नहिं घर आज लहुरवाभाय॥
इतना सुनिकै मल्हना बोली चन्द्रावलिकोबचनबुझाय १६५
खोंसो सूजी तुम योगिन के जिन अब पबनी दीनकराय॥
इतना सुनिकै चन्द्रावलि फिरि पहुँचीउदयसिंहढिगजाय १६६
कीन इशारा तव लाखनि का यहु रणवाघु बनाफरराय॥
लाखनि बोले तव ऊदन ते हमरो मूड़ कटायो आय १६७
माल खजाना कछु लाये ना देवैं कौन नेगु ह्याँ आय॥
तहिले पहुँची चन्द्रावलि तहँ सूजी धरी कानपर जाय १६८
बाइस हाथी तीनि पालकी दीन्ह्यो नेगु कनौजीराय॥
सूजी खोंसी जब ऊदन के जूझकोकंकणदीनगहाय १६९
देखिकै कंकण उदयसिंह का निश्चय मनै लीन ठहराय॥
साँचो योगी यहु ऊदन है मातैकहाबचनसमुझाय १७०
सुनिकै बातैं चन्द्रावलि की ऊदन नाम दीन बतलाय॥
बड़ी खुशाली भै सागर में सबकोउमिलींतहाँपरआय १७१


