पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४७५

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आल्हखण्ड । ४७४ तेहिते श्राज्ञा हम को देवो भी महराज कनोजीराय ॥ इतना मुनिकै जयचंद जरिंगे बोले सुनो बनाफरराय ११७ रख्यति लूटी तुम गाँजर की मोहवे द्रव्य दीन पहुँचाय ।। दैसमझौता सव गाँजर का पाछे जाउ बनाफरराय ११८ घोड़ा लूटे तुम बूंदी के सो-सब कहाँ दीन पठवाय ।। गेहूं खाये तुम गाँजर के ताते गई म्वटाई आय ११६ इतना कहिकै जयचंद राजा पहरा चौकी दीन कराय॥ कैद जानिकै आल्हा गकुर रूपनवारी लीन वुलाय १२० खबरि सुनावो तुम ऊदन का आल्हा परे कैदमा जाय ॥ दे समझौता तुम गाँजर का भाई अपन छुटाओ आय १२१ इतना सुनिक रूपन चलि भा रिजिगिरि अटातड़ाकाधाय॥ खबरि सुनाई वघऊदन का सुनते जरा लहुरवाभाय १२२ द्यावलि बोली जगनायक ते तुमहूं चलेजाउ यहि बार। कपड़ा मैले सब हमरे हैं कैसे जायँ राजदरवार १२३ इतना सुनिके ऊदन ठाकुर तुरतै इन्दल लीन बुलाय । कपड़ा दीन्यो जगनायक को तुरतै दुल लीन सजाय १२४ उड़न बछेड़ा हरनागर पर जगना तुरत भयो असवार ।। घोड़ बेंदुला के ऊपर मा ठाकुर उदयसिंह सरदार १२५ जयचंद राजा की ड्योढ़ी मा दोऊ अटे तड़ाका थाय !! मस्ता हाथी जयचंद राजा फाटक उपर दीन ढिलवाय१२६ मारिक भाला जगनायक ने हाथी दीन्यो तुरत भगाय ।। जहाँ कचहरी महराजा की दोऊ अटे तडाकाधाय १२७ सात तवा तह ईसपात के जयचंद राजा दीन घराय ॥ भाला गादै ई लोहे पर औवलमोहिंदेयदिखलाय १२%